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स्पीकर कुलतार सिंह संधवां द्वारा पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह जी की बरसी पर उनको गरिमापूर्ण श्रद्धांजलि भेंट

SPEAKER KULTAR SINGH SANDHWAN

चंडीगढ़, 25 दिसंबर:

देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह जी की बरसी के मौके पर संधवां गाँव में हुए एक प्रभावशाली श्रद्धांजलि समागम के दौरान पंजाब विधान सभा के स्पीकर स. कुलतार सिंह संधवां ने उनके द्वारा मुल्क और ख़ासकर पंजाब के लिए किए कार्यों को याद करते हुए ज्ञानी जी को सजदा किया।  

स. कुलतार सिंह संधवां ने ज्ञानी जी की तुलना अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के साथ करते हुए कहा कि आधी सदी तक सत्ता के साथ जुड़े रहने के बावजूद भी विनम्र रहते हुए उन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग की भलाई के लिए प्रयास करते रहे। उन्होंने कहा कि ज्ञानी ज़ैल सिंह जी सिख धर्म के रास्ते पर चलने वाले थे और उन्होंने गुरू साहिबान की अपार कृपा स्वरूप जहाँ से गुरू गोबिन्द सिंह जी गुजऱे थे वहां गुरू गोबिन्द सिंह मार्ग बनाकर गुरू साहिब की सेवा का कार्य किया।  

स. संधवां जोकि ख़ुद ज्ञानी ज़ैल सिंह जी के पोते हैं, ने उनके कार्यकाल के समय को याद करते हुए उनके द्वारा फरीदकोट को जि़ला बनाने का जिक्र करते हुए कहा कि जि़ला बनाने के मौके पर उन्होंने फरीदकोट के उसी पूर्व महाराजा से इमारत हासिल की, जिन्होंने कभी आज़ादी से पहले उन पर अत्याचार किया था। यह उनका कुशल प्रशासनिक अनुभव का ही नतीजा था कि वह हर एक को साथ लेकर चलते थे और पंजाब के मुख्यमंत्री से लेकर देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक बने।  

स. संधवां ने कहा कि ज्ञानी जी बहुत ही बुद्धिमान और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थे। वह अपने परिवार और राजनीति को किस तरह अगल रखते थे इसकी उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब ज्ञानी जी मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने अपने पुत्र को गुरुद्वारा साहिब ले जाकर प्रण करवाया कि वह उनके सरकारी कार्य से दूर रहेंगे।  

ज्ञानी जी को विकास पुरुष बताते हुए स्पीकर स. संधवां ने कहा कि पंजाब के 100 प्रतिशत गाँवों का बिजलीकरण उनके कार्यकाल के समय में ही हुआ। इसी तरह फरीदकोट में मेडिकल कॉलेज लाना भी उनकी दूरदर्शी सोच का ही नतीजा था। इसी तरह शहीद उधम सिंह जी की अस्थियां भी ज्ञानी ज़ैल सिंह जी के प्रयासों के साथ ही भारत आईं। उन्होंने जंग-ए-आज़ादी के पंजाब के महान शहीदों के स्मृतिचिन्ह बनवाए। प्रजामंडल लहर में शामिल होकर जहाँ उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में शमूलियत की थी वहीं उन्होंने आज़ादी सेनानियों को ताम्र पत्रों से सम्मानित करने की योजना लागू करने में भी अहम भूमिका निभाई।  

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ज्ञानी जी 25 दिसंबर, 1994 को शाश्वत जुदाई दे गए थे। इस मौके पर स्पीकर श्री संधवां के अलावा अन्य आदरणीयों ने भी ज्ञानी ज़ैल सिंह जी की प्रतिमा पर फूल-मालाएं भेंट कीं और अपनी श्रद्धा प्रकट की।  

SPEAKER KULTAR SINGH SANDHWAN

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