aaj ka hukamnama
(अंग 586 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग वडहंसु / वडहंस की वार (म: ४))
सलोकु मः ३ ॥
सतिगुरि मिलिऐ भुख गई भेखी* भुख न जाइ ॥ दुखि लगै घरि घरि फिरै अगै दूणी मिलै सजाइ ॥ अंदरि सहजु न आइओ सहजे ही लै खाइ ॥ मनहठि जिस ते मंगणा लैणा दुखु मनाइ ॥ इसु भेखै थावहु गिरहो भला जिथहु को वरसाइ ॥ सबदि रते तिना सोझी पई दूजै भरमि भुलाइ ॥ पइऐ किरति कमावणा कहणा कछू न जाइ ॥ नानक जो तिसु भावहि से भले जिन की पति पावहि थाइ ॥१॥
मः ३ ॥
सतिगुरि सेविऐ सदा सुखु जनम मरण दुखु जाइ ॥ चिंता मूलि न होवई अचिंतु वसै मनि आइ ॥ अंतरि तीरथु गिआनु है सतिगुरि दीआ बुझाइ ॥ मैलु गई मनु निरमलु होआ अम्रित सरि तीरथि नाइ ॥ सजण मिले सजणा सचै सबदि सुभाइ ॥ घर ही परचा पाइआ जोती जोति मिलाइ ॥ पाखंडि जमकालु न छोडई लै जासी पति गवाइ ॥ नानक नामि रते से उबरे सचे सिउ लिव लाइ ॥२॥
(गुरू रामदास जी / राग वडहंसु / वडहंस की वार (म: ४))
पउड़ी ॥
तितु जाइ बहहु सतसंगती जिथै हरि का हरि नामु बिलोईऐ ॥ सहजे ही हरि नामु लेहु हरि ततु न खोईऐ ॥ नित जपिअहु हरि हरि दिनसु राति हरि दरगह ढोईऐ ॥ सो पाए पूरा सतगुरू जिसु धुरि मसतकि लिलाटि लिखोईऐ ॥ तिसु गुर कंउ सभि नमसकारु करहु जिनि हरि की हरि गाल गलोईऐ ॥४॥(अर्थ)
(अंग 586 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग वडहंसु / वडहंस की वार (म: ४))
श्लोक महला ३॥
सतिगुरु से भेंट हो जाने पर भूख दूर हो जाती है लेकिन पाखण्ड धारण करने से भूख दूर नहीं होती। पाखण्डी व्यक्ति को बहुत दु:ख होता है, वह घर-घर भटकता रहता है और परलोक में भी उसे दुगुना दण्ड मिलता है। उसके मन में संतोष नहीं होता तांकि जो कुछ भी उसे मिलता है, उसे संतोषपूर्वक खाए। जिस किसी से भी वह माँगता है, वह अपने मन के हठ से माँगता है और लेकर वे अपने देने वाले को दु:ख ही पहुँचाता है। इस आडम्बर का वेष करने से तो गृहस्थी होना बेहतर है, जो किसी न किसी को तो कुछ देता ही है। जो व्यक्ति शब्द में मग्न हैं, उन्हें सूझ आ जाती है और कुछ लोग तो दुविधा में ही भूले हुए हैं। वे अपनी तकदीर के अनुसार कर्म करते हैं और इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। हे नानक ! जो भगवान को अच्छे लगते हैं, वे भले हैं और जिनकी प्रतिष्ठा वह बरकरार रखता है॥ १॥
महला ३॥
सतिगुरु की सेवा करने से मनुष्य हमेशा सुखी रहता है और उसकी जन्म-मरण की पीड़ा दूर हो जाती है। उसे बिल्कुल ही चिन्ता नहीं होती और अचिंत प्रभु उसके मन में आकर निवास कर लेता है। सतगुरु ने यह ज्ञान प्रदान किया है कि मनुष्य के हृदय में ही ज्ञान रूपी तीर्थ-स्थान है। इस ज्ञान रूपी तीर्थ-स्थान के अमृत-सरोवर में स्नान करने से सर्व प्रकार की मैल उतर जाती है और मन निर्मल हो जाता है । सच्चे शब्द के प्रेम द्वारा सज्जनों को अपना सज्जन (प्रभु) मिल जाता है। अपने घर में ही वे दिव्य ज्ञान को पा लेते हैं और उनकी ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो जाती है। ढोंगी पुरुष को यमदूत नहीं छोड़ता और उसे तिरस्कृत करके परलोक में ले जाता है। हे नानक ! जो सत्य-नाम में मग्न रहते हैं, उनका उद्धार हो जाता है और सच्चे प्रभु के साथ ही उनकी वृति लगी रहती है।॥ २॥
(गुरू रामदास जी / राग वडहंसु / वडहंस की वार (म: ४))
पउड़ी।
उस सत्संगति में जाकर बैठो, जहाँ हरि-नाम का मंथन अर्थात् सिमरन किया जाता है। वहाँ सहज अवस्था में हरि के नाम का भजन करो चूंकि तुम हरि के नाम-तत्त्व को न गंवा बैठना। नित्य ही हरि-परमेश्वर का भजन करते रहो, हरि के दरबार में आश्रय प्राप्त हो जाएगा। जिस व्यक्ति के माथे पर शुभ-कर्मों के फलस्वरूप विधाता द्वारा तकदीर लिखी होती है, उसे पूर्ण सतिगुरु मिल जाता है। सभी लोग उस गुरु को नमस्कार करो, जिसने हरि की कथा कथन की है॥ ४ ॥
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