Friday, September 20, 2024
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हुक्मनामा श्री दरबार साहिब (9 फ़रवरी 2024)

aaj ka hukamnama

(अंग 578 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग वडहंसु / अलाहणीआ)
रागु वडहंसु महला १ घरु ५ अलाहणीआ
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
धंनु सिरंदा सचा पातिसाहु जिनि जगु धंधै लाइआ ॥ मुहलति पुनी पाई भरी जानीअड़ा घति* चलाइआ ॥ जानी घति चलाइआ लिखिआ आइआ रुंने वीर सबाए ॥ कांइआ हंस थीआ वेछोड़ा जां दिन पुंने मेरी माए ॥ जेहा लिखिआ तेहा पाइआ जेहा पुरबि कमाइआ ॥ धंनु सिरंदा सचा पातिसाहु जिनि जगु धंधै लाइआ ॥१॥
साहिबु सिमरहु मेरे भाईहो सभना एहु पइआणा ॥ एथै धंधा कूड़ा चारि दिहा आगै सरपर जाणा ॥ आगै सरपर जाणा जिउ मिहमाणा काहे गारबु कीजै ॥ जितु सेविऐ दरगह सुखु पाईऐ नामु तिसै का लीजै ॥ आगै हुकमु न चलै मूले सिरि सिरि किआ विहाणा ॥ साहिबु सिमरिहु मेरे भाईहो सभना एहु पइआणा ॥२॥
जो तिसु भावै सम्रथ सो थीऐ हीलड़ा एहु संसारो ॥ जलि थलि महीअलि रवि रहिआ साचड़ा सिरजणहारो ॥ साचा सिरजणहारो अलख अपारो ता का अंतु न पाइआ ॥ आइआ तिन का सफलु भइआ है इक मनि जिनी धिआइआ ॥ ढाहे ढाहि उसारे आपे हुकमि सवारणहारो ॥ जो तिसु भावै सम्रथ सो थीऐ हीलड़ा एहु संसारो ॥३॥
नानक रुंना बाबा जाणीऐ जे रोवै लाइ पिआरो ॥ वालेवे कारणि बाबा रोईऐ रोवणु सगल बिकारो ॥ रोवणु सगल बिकारो गाफलु संसारो माइआ कारणि रोवै ॥ चंगा मंदा किछु सूझै नाही इहु तनु एवै खोवै ॥ ऐथै आइआ सभु को जासी कूड़ि करहु अहंकारो ॥ नानक रुंना बाबा जाणीऐ जे रोवै लाइ पिआरो ॥४॥१॥(अर्थ)
(अंग 578 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग वडहंसु / अलाहणीआ)
रागु वडहंसु महला १ घरु ५ अलाहणीआ
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
वह जगत का रचयिता सच्चा पातशाह, प्रभु धन्य है, जिसने सारी दुनिया को धन्धे में लगाया है। जब अन्तिम समय पूरा हो जाता है और जीवन प्याला भर जाता है तो यह प्यारी आत्मा पकड़ कर आगे यमलोक में धकेल दी जाती है। जब ईश्वर का हुक्म आ जाता है तो प्यारी आत्मा यमलोक में धकेल दी जाती है और सभी सगे-संबंधी, भाई-बहन फूट-फूट कर रोने लग जाते हैं। हे मेरी माता ! जब जीव की जिन्दगी के दिन समाप्त हो जाते हैं तो शरीर एवं आत्मा जुदा हो जाते हैं। जीव पूर्व-जन्म में जैसे कर्म करता है, वैसे ही कर्म-फल की प्राप्ति होती है और उस ही उसका भाग्य लिखा होता है। वह जगत का रचयिता सच्चा पातशाह, परमेश्वर धन्य है, जिसने जीवों को (कर्मो के अनुसार) धन्धे में लगाया हुआ है॥ १॥
हे मेरे भाइयो ! उस मालिक को याद करो चूंकि सभी ने दुनिया से चले जाना है। इहलोक का झूठा धंधा केवल चार दिनों का ही है, फिर जीव निश्चित ही आगे परलोक को चल देता है। जीव ने निश्चितं ही संसार को छोड़कर चले जाना है और वह यहाँ पर एक अतिथि के समान है, फिर क्यों अहंकार कर रहे हो ? जिसकी उपासना करने से उसके दरबार में सुख प्राप्त होता है, उस प्रभु के नाम का भजन करना चाहिए। आगे परलोक में परमात्मा के अलावा किसी का हुक्म नहीं चलता और प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है। हे मेरे भाइयो ! परमात्मा को याद करो, चूंकि सभी ने संसार को छोड़कर चले जाना है॥ २॥
उस सर्वशक्तिमान प्रभु को जो मंजूर है, वही घटित होता है। जगत के जीवों का उद्यम तो एक बहाना ही है। सच्चा सृजनहार जल, धरती, आकाश-पाताल में सर्वव्यापी है। वह सच्चा सृजनहार परमात्मा अदृष्ट एवं अनन्त है, उसका अन्त पाया नहीं जा सकता। जो लोग एकाग्रचित होकर परमात्मा का ध्यान करते हैं, उनका इस दुनिया में जन्म लेना सफल है। वह स्वयं ही सृष्टि का निर्माण करता है और स्वयं ही इसका नाश कर देता है और अपने हुक्म द्वारा स्वयं ही संवारता है। उस सर्वशक्तिमान परमात्मा को जो कुछ मंजूर है, वही घटित होता है और यह संसार उद्यम करने का एक सुनहरी अवसर है॥ ३॥
गुरु नानक का कथन है कि हे बाबा ! वही सच्चा रोता समझा जाता है, यदि वह प्रभु के प्रेम में रोता है। हे बाबा ! सांसारिक पदार्थों की खातिर जीव विलाप करता है, इसलिए सभी विलाप व्यर्थ हैं। यह सारा विलाप करना निरर्थक है। संसार प्रभु की ओर से विमुख होकर धन-दौलत के लिए रोता है। भले एवं बुरे की जीव को कुछ भी सूझ नहीं और इस शरीर को वह व्यर्थ ही गंवा देता है। इस दुनिया में जो भी आता है, वह इसे छोड़कर चला जाता है। इसलिए अभिमान करना तो झूठा ही है। गुरु नानक का कथन है कि हे बाबा ! जो प्रभु प्रेम में विलाप करता है, वही मनुष्य सच्चा वैराग्यवान एवं सही रूप में रोता समझा जाता है॥४॥१॥

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