नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेताओं में से एक राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को पद से इस्तीफा देना पड़ा उनकी जगह सीएम नीतीश फिर एक बार जदयू के अध्यक्ष बनने जा रहे है। सियासी गलियारों के सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार ने ललन सिंह को पार्टी में किनारे करने का फैसला किया। दरअसल, ललन सिंह के सबसे अधिक भरोसेमंद होने से लेकर अविश्वासी बनने के दौर तक की कहानी बेहद ही दिलचस्प रही है। इस बीच में ललन सिंह की राजनीतिक यात्रा भी बहुत रोचक रही है। ललन सिंह के पहली बार सुर्खियों में आने की कहानी लालू यादव के विरोध के खिलाफ कानून लड़ाई से शुरू होती है, लेकिन जदयू अध्यक्ष पद से हटाए जाने की कहानी लालू प्रेम से जुड़ जाती है। कहानी कुछ ऐसी है कि ललन सिंह वो शख्स हैं जो लालू प्रसाद के खिलाफ लगातार मुखर रहे और चारा घोटाले की कानूनी लड़ाई में शामिल हुए थे घोटाले की शिकायत करने वालों में ललन सिंह सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे। लालू प्रसाद यादव का मुखरता से विरोध करने वाले ललन सिंह जब 2015 में राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी, तब वह इससे खुश नहीं हुये थे। यही कारण था कि 2017 में आरजेडी का साथ छोड़ बीजेपी से दोबारा गठबंधन करके नीतीश कुमार सरकार बनवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस सरकार में सीएम नीतीश कुमार बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने। तभी से कहा जा रहा है कि ललन सिंह की लालू यादव और तेजस्वी यादव से नजदीकियां काफी बढ़ती गईं। यही कारण रहा कि नीतीश कुमार से दिन भर दिन धुरी बढ़ती गयी जो आखिरकार उनको जदयू अध्यक्ष पद की कुर्सी गंवाने के मोड़ तक ले आई। वही, कहा तो यह जाता है कि ललन सिंह के जीवन का यह सियासी मोड़ असम्मानजनक विदाई से बच गया। लेकिन, वास्तव में क्या ऐसा ही है। दरअसल, ललन सिंह को हटाए जाने की चर्चा लगातार सामने आ रही है और जानकारों की नजर में सबसे बड़ी डिसरिस्पेक्ट की बात तो यही है।
ललन सिंह और नीतीश कुमार की स्टोरी में लालू यादव का ट्विस्ट
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