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श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

TODAY HUKAMNAMA SAHIB

गोंड महला ५ ॥
धूप दीप सेवा गोपाल ॥ अनिक बार बंदन करतार ॥ प्रभ की सरणि गही सभ तिआगि ॥ गुर सुप्रसंन भए वड भागि ॥१॥
आठ पहर गाईऐ गोबिंदु ॥ तनु धनु प्रभ का प्रभ की जिंदु ॥१॥ रहाउ ॥
हरि गुण रमत भए आनंद ॥ पारब्रहम पूरन बखसंद ॥ करि किरपा जन सेवा लाए ॥ जनम मरण दुख मेटि मिलाए ॥२॥
करम धरम इहु ततु गिआनु ॥ साधसंगि जपीऐ हरि नामु ॥ सागर तरि बोहिथ प्रभ चरण ॥ अंतरजामी प्रभ कारण करण ॥३॥
राखि लीए अपनी किरपा धारि ॥ पंच दूत भागे बिकराल ॥ जूऐ जनमु न कबहू हारि ॥ नानक का अंगु कीआ करतारि ॥४॥१२॥१४॥(अर्थ)
(अंग 866 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अर्जन देव जी / राग गोंड / -)
गोंड महला ५ ॥
परमात्मा की उपासना ही मेरे लिए वास्तव में धूप एवं दीप की तरह अर्चना करना है और अनेक वार करतार की ही वन्दना करता हूँ। सबकुछ त्याग कर मैंने प्रभु की शरण ग्रहण कर ली है और मैं बड़ा भाग्यशाली हैं कि गुरु मुझ पर सुप्रसन्न हो गया है॥ १॥
आठ प्रहर गोविंद का यशोगान करना चाहिए। यह तन-धन प्रभु का दिया हुआ है और प्राण भी उसकी ही देन है ॥ १॥ रहाउ॥
भगवान का गुणगान करने से मन में आनंद बना रहता है। परब्रह्म क्षमावान् एवं कृपा का घर है और कृपा करके उसने भक्तजनों को अपनी सेवा में लगा लिया है। उसने जन्म-मरण के दुखः मिटाकर अपने साथ मिला लिया है॥ २ ॥
कर्म धर्म एवं सच्चा ज्ञान तो यही है कि सत्संग में मिलकर हरि का नाम जपना चाहिए। प्रभु के चरण ऐसा जहाज है जो संसार-सागर से पार करवा देता है। अन्तर्यामी प्रभु ही सब करने एवं कराने वाला है ॥३॥
उसने अपनी कृपा करके बचा लिया है और भयानक पाँच दूतों-काम, क्रोध, मोह, लोभ एवं अहंकार को भगा दिया है। अब वह कभी भी जुए में जन्म नहीं हारेगा, क्योकि ईश्वर ने स्वयं नानक का पक्ष लिया है ॥ ४॥ १२॥ १४॥

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