Today Hukamnama
(अंग 875 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(भक्त रविदास जी / राग गोंड / -)
रागु गोंड बाणी रविदास जीउ की घरु २
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
मुकंद मुकंद जपहु संसार ॥ बिनु मुकंद तनु होइ अउहार ॥ सोई मुकंदु मुकति का दाता ॥ सोई मुकंदु हमरा पित माता ॥१॥
जीवत मुकंदे मरत मुकंदे ॥ ता के सेवक कउ सदा अनंदे ॥१॥ रहाउ ॥
मुकंद मुकंद हमारे प्रानं ॥ जपि मुकंद मसतकि नीसानं ॥ सेव मुकंद करै बैरागी ॥ सोई मुकंदु दुरबल धनु लाधी ॥२॥
एकु मुकंदु करै उपकारु ॥ हमरा कहा करै संसारु ॥ मेटी जाति हूए दरबारि ॥ तुही मुकंद जोग जुग तारि ॥३॥
उपजिओ गिआनु हूआ परगास ॥ करि किरपा लीने कीट दास ॥ कहु रविदास अब त्रिसना चूकी ॥ जपि मुकंद सेवा ताहू की ॥४॥१॥(अर्थ)
(अंग 875 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(भक्त रविदास जी / राग गोंड / -)
रागु गोंड बाणी रविदास जीउ की घरु २
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हे संसार के लोगो ! ईश्वर का जाप करो, उसका सिमरन किए बिना यह तन व्यर्थ ही चला जाता है। ईश्वर ही मुक्ति का दाता है और हमारा माता-पिता भी वही है॥ १॥
जिसका जीना-मरना सब भगवान पर है, उसके सेवक को सदा आनंद बना रहता है।१॥ रहाउ ॥
ईश्वर की उपासना ही हमारे प्राणों का आधार है। उसका जाप करने से मस्तक पर मुक्ति का चिन्ह पड़ जाता है। कोई वैरागी ही मुकुन्द की अर्चना करता है। मुझ जैसे दुर्बल को भी मुकुन्द नाम रूपी धन हासिल हो गया है॥ २ ॥
जब एक परमेश्वर स्वयं मुझ पर उपकार करता है तो यह संसार मेरा क्या बेिगाड़ सकता है। उसकी भक्ति ने मेरी नीच जाति को मिटाकर अपने द्वार का दरबारी नियुक्त कर दिया है। हे मुकुन्द ! एक तू ही युगों-युगांतरों से पार करवाने में समर्थ है॥ ३॥
मेरे मन में ज्ञान उत्पन्न होने से प्रकाश हो गया है। उसने कृपा करके मुझ जैसे तुच्छ जीव को अपना दास बना लिया है। रविदास जी कहते हैं कि अब मेरी तृष्णा बुझ गई है, मुकुन्द को जप कर उसकी सेवा में ही लीन रहता हूँ॥ ४॥ १॥
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