Today Hukamnama
(गुरू अर्जन देव जी / राग जैतसरी / जैतसरी की वार (म: ५))
सलोक ॥
संत उधरण दइआलं आसरं गोपाल कीरतनह ॥ निरमलं संत संगेण ओट नानक परमेसुरह ॥१॥
चंदन चंदु न सरद रुति मूलि न मिटई घांम ॥ सीतलु थीवै नानका जपंदड़ो हरि नामु ॥२॥
पउड़ी ॥
चरन कमल की ओट उधरे सगल जन ॥ सुणि परतापु गोविंद निरभउ भए मन ॥ तोटि न आवै मूलि संचिआ नामु धन ॥ संत जना सिउ संगु पाईऐ वडै पुन ॥ आठ पहर हरि धिआइ हरि जसु नित सुन ॥१७॥(अर्थ)
(अंग 709 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अर्जन देव जी / राग जैतसरी / जैतसरी की वार (म: ५))
श्लोक॥
दयालु परमेश्वर ही संतों का कल्याण करने वाला है, अतः उस प्रभु का कीर्तन ही उनके जीवन का एकमात्र सहारा है। हे नानक ! संतों-महापुरुषों की संगति करने एवं परमेश्वर की शरण लेने से मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है॥ १॥
चन्दन का लेप लगाने, चाँदनी रात एवं शरद् ऋतु से मन की जलन बिल्कुल दूर नहीं होती। हे नानक ! हरि-नाम का जाप करने से मन शीतल एवं शांत हो जाता है ॥ २ ॥
पउड़ी ॥
भगवान के चरण-कमलों की शरण में आने से ही समस्त भक्तजनों का कल्याण हो गया है। गोविन्द का यश-प्रताप सुनने से उनका मन निर्भीक हो गया है। नाम रूपी धन संचित करने से जीवन में किसी भी प्रकार की पदार्थ की कमी नहीं रहती। संतजनों से संगत बड़े पुण्य करम से होती है। इसलिए आठ प्रहर भगवान का ही ध्यान करते रहना चाहिए और नित्य ही हरि-यश सुनना चाहिए॥ १७॥
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