aaj ka hukamnama
(अंग 555 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग बिहागड़ा / बिहागड़े की वार (म: ४))
सलोक मः ३ ॥
हउमै विचि जगतु* मुआ मरदो मरदा जाइ ॥ जिचरु विचि दमु है तिचरु न चेतई कि करेगु अगै जाइ ॥ गिआनी होइ सु चेतंनु होइ अगिआनी अंधु कमाइ ॥ नानक एथै कमावै सो मिलै अगै पाए जाइ ॥१॥
मः ३ ॥
धुरि खसमै का हुकमु पइआ विणु सतिगुर चेतिआ न जाइ ॥ सतिगुरि मिलिऐ अंतरि रवि रहिआ सदा रहिआ लिव लाइ ॥ दमि दमि सदा समालदा दमु न बिरथा जाइ ॥ जनम मरन का भउ गइआ जीवन पदवी पाइ ॥ नानक इहु मरतबा तिस नो देइ जिस नो किरपा करे रजाइ ॥२॥
(गुरू रामदास जी / राग बिहागड़ा / बिहागड़े की वार (म: ४))
पउड़ी ॥
आपे दानां बीनिआ आपे परधानां ॥ आपे रूप दिखालदा आपे लाइ धिआनां ॥ आपे मोनी वरतदा आपे कथै गिआनां ॥ कउड़ा किसै न लगई सभना ही भाना ॥ उसतति बरनि न सकीऐ सद सद कुरबाना ॥१९॥(अर्थ)
(अंग 555 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग बिहागड़ा / बिहागड़े की वार (म: ४))
श्लोक महला ३॥
समूचा विश्व अहंकार में मरा हुआ है और बार-बार मृत्यु को ही प्राप्त होता जा रहा है। जब तक शरीर में प्राण होते हैं, तब तक मनुष्य परमात्मा का नाम याद नहीं करता। फिर आगे परलोक में पहुँच कर क्या करेगा ? जो व्यक्ति ज्ञानवान है, वह चेतन होता है लेकिन अज्ञानी व्यक्ति अन्धे कर्मों में ही क्रियाशील रहता है। हे नानक ! इहलोक में मनुष्य जो भी कर्म करता है, वही मिलता है तथा परलोक में जाकर वही प्राप्त होता है॥ १॥
मः ३ ॥
आदि से ही परमात्मा का अटल हुक्म है कि सच्चे गुरु के बिना उसका नाम-सुमिरन नहीं हो सकता। सच्चा गुरु मिल जाए तो मनुष्य अपने मन में ही परमात्मा को व्यापक अनुभव करता है और हमेशा ही उसकी सुरति में समाया रहता है। श्वास-श्वास से सर्वदा वह उसे याद करता है और उसका कोई भी श्वास व्यर्थ नहीं जाता। भगवान का नाम याद करने से उसका जीवन-मृत्यु का आतंक नाश हो जाता है और वह अटल जीवन पदवी प्राप्त कर लेता है। हे नानक ! परमात्मा यह अमर पदवी उसे ही प्रदान करता है, जिसे अपनी रज़ा से कृपा धारण करता है॥ २ ॥
(गुरू रामदास जी / राग बिहागड़ा / बिहागड़े की वार (म: ४))
पउड़ी ॥
परमात्मा आप ही सर्वज्ञाता, त्रिकालदर्शी और आप ही प्रधान है। वह आप ही अपने रूप का दर्शन करवाता है और आप ही मनुष्य को ध्यान-मनन में लगा देता है। वह आप ही मौनावस्था में विचरन करता है और आप ही ब्रह्म-ज्ञान का कथन करता है। वह किसी को कड़वा नहीं लगता और सभी को भला लगता है। उसकी महिमा-स्तुति वर्णन नहीं की जा सकती और मैं उस पर सर्वदा कुर्बान जाता हूँ॥ १६॥
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