aaj ka hukamnama
(अंग 503 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग गूजरी / असटपदीआ)
गूजरी असटपदीआ महला १ घरु १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
एक नगरी पंच चोर बसीअले बरजत चोरी धावै ॥ त्रिहदस माल रखै जो नानक मोख मुकति सो पावै ॥१॥
चेतहु बासुदेउ बनवाली ॥ रामु रिदै जपमाली ॥१॥ रहाउ ॥
उरध मूल जिसु साख तलाहा चारि बेद जितु लागे ॥ सहज भाइ जाइ ते नानक पारब्रहम लिव जागे ॥२॥
पारजातु घरि आगनि मेरै पुहप पत्र ततु डाला ॥ सरब जोति निरंजन स्मभू छोडहु बहुतु जंजाला ॥३॥
सुणि सिखवंते नानकु बिनवै छोडहु माइआ जाला ॥ मनि बीचारि एक लिव लागी पुनरपि जनमु न काला ॥४॥
सो गुरू सो सिखु कथीअले सो वैदु जि जाणै रोगी ॥ तिसु कारणि कमु न धंधा नाही धंधै गिरही जोगी ॥५॥
कामु क्रोधु अहंकारु तजीअले लोभु मोहु तिस माइआ ॥ मनि ततु अविगतु धिआइआ गुर परसादी पाइआ ॥६॥
गिआनु धिआनु सभ दाति कथीअले सेत बरन सभि दूता ॥ ब्रहम कमल मधु तासु रसादं जागत नाही सूता ॥७॥
महा ग्मभीर पत्र पाताला नानक सरब जुआइआ ॥ उपदेस गुरू मम पुनहि न गरभं बिखु तजि अम्रितु पीआइआ ॥८॥१॥(अर्थ)
(अंग 503 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग गूजरी / असटपदीआ)
गूजरी असटपदीआ महला १ घरु १
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
शरीर रूपी एक नगरी में काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार पाँच चोर निवास करते हैं। वर्जित करने पर भी वे शुभ गुणों को चोरी करने के लिए दौड़ते रहते हैं। हे नानक ! जो प्राणी तीन गुणों एवं दस इन्द्रियों से अपने आत्मिक गुणों का सामान बचाकर रखता है, वह मोक्ष पा लेता है॥ १॥
हे भाई ! वासुदेव को हमेशा याद करो। राम को हृदय में बसाना ही जपमाला है॥ १॥ रहाउ॥
जिसकी जड़ें ऊपर को हैं तथा शाखाएँ नीचे लटकती हैं और उसके पते चार वेद जुड़े हुए हैं, हे नानक ! जो जीव परब्रह्म की वृति में सावधान रहता है, वह सहज ही परब्रह्म रूपी पेड़ के पास पहुँच जाता है।॥ २॥
भगवान रूपी पारिजात वृक्ष मेरे घर के आंगन में है तथा ज्ञान रूप इसके पुष्प, पते एवं टहनियों हैं। हे भाई ! उस स्वयंभू निरंजन परमात्मा की ज्योति सब में समाई हुई है, अतः दुनिया के जंजाल छोड़ दो॥ ३॥
हे शिक्षा के अभिलाषी ! सुनो, नानक विनती करता है कि यह सांसारिक माया-जाल त्याग दो । अपने मन में विचार कर ले कि एक ईश्वर से ध्यान लगाने से बार-बार के जन्म-मरण के चक्र में नहीं आना पड़ेगा ॥ ४॥
वही गुरु कहलवाता है, वही शिष्य कहलवाता है और वही वैद्य है जो रोगी के रोग को जानकर उसका उपचार कर सके। वह सांसारिक काम-धंधे में लिप्त नहीं होता और गृहस्थी में ही कर्म करता हुआ प्रभु से जुड़ा रहता है॥ ५॥
वह काम, क्रोध, अहंकार, लोभ, मोह एवं माया को त्याग देता है। अपने मन में वह सत्यस्वरूप एवं अविगत प्रभु का ध्यान करता है और गुरु की कृपा से उसे प्राप्त कर लेता है॥ ६ ॥
ज्ञान-ध्यान समस्त देन ईश्वर द्वारा उसे मिली कही जाती है। सभी कामादिक विकार उसके समक्ष सतोगुणी हो जाते हैं। वह ब्रह्म रूपी कमल के शहद का पान करता है और सदैव जाग्रत रहता है तथा माया की निद्रा का शिकार नहीं होता। ७॥
ब्रह्म रूपी कमल महा गंभीर है तथा इसके पते पाताल हैं। हे नानक ! वह सारी सृष्टि से जुड़ा हुआ है। गुरु के उपदेश के फलस्वरूप मैं पुनः गर्भ में प्रवेश नहीं करूँगा, क्योंकि मैंने सांसारिक विष को त्याग कर नामामृत का पान किया है॥ ८ ॥ १॥
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