aaj ka hukamnama
(अंग 664 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग धनासरी / -)
धनासरी महला ३ ॥
सदा धनु अंतरि नामु समाले ॥ जीअ जंत जिनहि प्रतिपाले ॥ मुकति पदारथु तिन कउ पाए ॥ हरि कै नामि रते लिव लाए ॥१॥
गुर सेवा ते हरि नामु धनु पावै ॥ अंतरि परगासु हरि नामु धिआवै ॥ रहाउ ॥
इहु हरि रंगु गूड़ा धन पिर होइ ॥ सांति सीगारु रावे प्रभु सोइ ॥ हउमै विचि प्रभु कोइ न पाए ॥ मूलहु भुला जनमु गवाए ॥२॥
गुर ते साति सहज सुखु बाणी ॥ सेवा साची नामि समाणी ॥ सबदि मिलै प्रीतमु सदा धिआए ॥ साच नामि वडिआई पाए ॥३॥
आपे करता जुगि जुगि सोइ ॥ नदरि करे मेलावा होइ ॥ गुरबाणी ते हरि मंनि वसाए ॥ नानक साचि रते प्रभि आपि मिलाए ॥४॥३॥(अर्थ)
(अंग 664 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग धनासरी / -)
धनासरी महला ३ ॥
जीव उसका नाम-सिमरन करते रहते हैं और यह नाम-धन सदैव जीव के हृदय में बसता है,” जिस परमात्मा ने समस्त जीवों का पालन-पोषण किया है। प्रभु मुक्ति पदार्थ उनके दामन में ही डालता है जो मनुष्य हरि के नाम में लीन रहते और उसमें ही ध्यान लगाकर रखते हैं ॥१॥
प्रत्येक मनुष्य गुरु की सेवा द्वारा हरि-नाम धन को प्राप्त करता है। जो हरि-नाम का ध्यान करता है, उसके हृदय में ज्ञान का प्रकाश हो जाता है॥ रहाउ॥
यह हरि-प्रेम का गहरा रंग प्रभु-पति की उस जीव-स्त्री पर ही चढ़ता है, जो शांति को अपना श्रृंगार बनाती है। कोई भी मनुष्य अहंकार में प्रभु को नहीं पा सकता और वह अपने मूल प्रभु को भुला कर अपना जन्म व्यर्थ गंवा लेता है॥ २॥
शांति, आनंद एवं सुख देने वाली वाणी गुरु से ही प्राप्त होती है। गुरु की सच्ची सेवा करने से मन नाम में लीन हो जाता है। जिस व्यक्ति को शब्द की उपलब्धि हो जाती है, वह सदैव अपने प्रियतम प्रभु का ही ध्यान करता रहता है। इस तरह वह सत्य-नाम द्वारा प्रभु के दरबार पर शोभा प्राप्त करता है॥ ३॥
वह कर्ता-परमेश्वर युग-युगांतरों में विद्यमान है। यदि वह अपनी करुणा-दृष्टि करे तो जीव का उससे मिलन होता है। गुरुवाणी के द्वारा मनुष्य प्रभु को अपने मन में बसा लेता है। हे नानक ! जो व्यक्ति सत्य के प्रेम में मग्न हो जाते हैं, प्रभु स्वयं ही उन्हें अपने साथ मिला लेता है॥ ४॥ ३॥
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