Wednesday, January 15, 2025

एक बात जो सबको करती है हैरान !कड़ाके की ठंड में भी कैसे नंगे बदन रहते हैं नागा साधु, आखिर राज़ क्या है?

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ICY CHILLY WINTER HOW NAGA SURVIVE

प्रयागराज महाकुंभ में कड़ाके की ठंड में भी नागा बाबा नंगे बदन घूम रहे हैं. इसी कड़ाके की बर्फीली ठंड में वह गंगा – यमुना के संगम में कूदकर नहाते भी हैं. आखिर क्या है इसका राज?

नागा साधुओं का कड़ाके की ठंड में भी नंगे रहने का रहस्य काफी रोचक और गहरा है. ये शारीरिक सहनशक्ति से कहीं ज्यादा है. क्या इसमें उस राख का रहस्य ज्यादा है, जो नागा बाबा अपने बदन पर लपेटते हैं या कोई और बात. जानते हैं उन बातों को जिनके जरिए नागा बाबा लोगों को कड़ाके की ठंड में भी ठंड नहीं लगती.

1. कठोर तपस्या और साधना:

नागा साधु लंबे समय तक कठोर तपस्या करते हैं, जिससे उनका शरीर कठोर परिस्थितियों में ढल जाता है. नियमित ध्यान और योग अभ्यास से वे अपने शरीर और मन पर नियंत्रण पा लेते हैं. इससे उन्हें गर्मी-सर्दी का अनुभव कम होता है.

हिमालयी योगी तो कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया के माध्यम से अपने शरीर में ऊर्जा को जाग्रत करते हैं. कुंडलिनी एक शक्तिशाली ऊर्जा है जो जब जाग्रत होती है तो शरीर में गर्मी पैदा करती है. जिससे ठंड में उनका बदन अच्छा खासा गर्म रहता है. वो शरीर के सूक्ष्म व्यायामों के माध्यम से रक्त संचार को बढ़ाते हैं और शरीर को गर्म रखने में मदद करते हैं.

प्राणायाम के माध्यम से योगी अपनी श्वास को नियंत्रित करते हैं. शरीर में प्राण (जीवन शक्ति) को संतुलित करते हैं. यह प्रक्रिया शरीर को गर्म रखने में मदद करती है. ध्यान के माध्यम से योगी अपनी मानसिक स्थिति को शांत करते हैं और शरीर के भीतर की गर्मी को महसूस करने में सक्षम होते हैं. हालांकि हिमालयी योगियों और कुछ नागा बाबाओं द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीकें बहुत ही जटिल और गहन होती हैं.

2. भस्म का महत्व:
अब आइए भस्म यानि राख की बात करते हैं. क्या इसको शरीर पर मलने से वाकई ठंड नहीं लगती. बहुत नागा बाबाओं ने इंटरव्यू में कहा है कि शरीर की राख मलने के बाद वह ठंड को दूुर भगा देते हैं. शरीर पर लगाई राख एक तरह से इंसुलेटर का काम करती है. यह शरीर को गर्मी और सर्दी दोनों से बचाती है. इसका धार्मिक महत्व भी है. भस्म को पवित्र माना जाता है. ये साधुओं को नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है.

3. खानपान और जीवनशैली:
शरीर को साधने में सात्विक आहार की भी खास भूमिका होती है. इससे उनका शरीर स्वस्थ रहता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. नागा साधु एक सरल जीवन जीते हैं, जिससे वे मानसिक रूप से मजबूत होते हैं.

4. मानसिक दृढ़ता:
संसार की मोह-माया से दूर रहकर वे मानसिक रूप से मजबूत होते हैं. उनका लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना होता है, इसलिए वे शारीरिक सुख-दुख से परे रहते हैं. वो अपने शरीर में बाहरी तौर पर ना तो ठंड का अनुभव करते हैं और ना गर्मी.

5. शरीर की प्राकृतिक क्षमता:
माना जाता है कि मानव शरीर में असीमित क्षमता होती है. वह एक्सट्रीम परिस्थितियों में खुद को ढालने में सक्षम होता है. बशर्ते कि आप शरीर का उस तरीके से साधना और ढालना जानते हों. नागा साधुओं का शरीर भी इसी तरह ढल जाता है. नागा साधुओं का कड़ाके की ठंड में नंगे रहने का रहस्य सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक भी है. यह उनके कठोर तप, ध्यान, योग, खानपान और जीवनशैली का परिणाम है. वे हमें सिखाते हैं कि मानव शरीर और मन कितने मजबूत हो सकते हैं.

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नागा पंथ में शामिल होने के दौरान वो लंगोट पहनते हैं लेकिन जब कुंभ के मेले में नागा साधु का झुंड इकट्ठा होता है, तो इसके बाद वो लंगोट का भी त्याग कर देते हैं. नागा साधुओं को सबसे पहले ब्रह्मचार्य की शिक्षा दी जाती है और फिर महापुरुष की दीक्षा.

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