Colonel Karanbir Singh
पंजाब में जालंधर के मिलिट्री अस्पताल में एक भारतीय वीर की 8 साल कोमा में रहने के बाद मौत हो गई थी। आज यानी मंगलवार को राम बाग श्मशान घाट में भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल करणबीर सिंह नत्त का सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। परिवार ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी।
बेटी गुरनीत कौर ने पिता लेफ्टिनेंट कर्नल करणबीर सिंह नत्त को मुखाग्नि दी। यहां छोटी बेटी अश्नीत कौर भी मौजूद थी। पूरे परिवार का रो-रो कर बुरा हाल था। मौके पर मौजूद कई आर्मी अफसरों का भी आंखें नम थीं।
इस दौरान भारतीय सेना के कई बड़े अधिकारी भी मौजूद रहे। स्व. लेफ्टिनेंट कर्नल करणबीर सिंह नत्त की बहादुरी की कहानी हमेशा अमर रहेगी। करणबीर सिंह ने अपने साथी को बचाने के लिए दुश्मनों की गोली अपने शरीर पर खाई थी। रविवार को उन्होंने जालंधर कैंट के मिलिट्री हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली थी।
देश के इस बहादुर बेटे के 8 साल कोमा में गुजर रहे एक-एक दिन बड़े संघर्ष के रूप में जाने जाएंगे। मिलिट्री हॉस्पिटल में डॉक्टर उनकी देखभाल कर रहे थे। उनके कमरे में पूरा दिन गुरबाणी की अमृत वर्षा होती थी। उन्हें रोजाना खाने में सूप और जूस दिया जाता था। उन्हें यह तरल खाना देने के लिए फूड पाइप का इस्तेमाल होता था।
कलाश्निकोव राइफल की गोली लगी थी
घाटी में आतंकवादियों के हमले के दौरान उनके जबड़े पर गोली लग गई थी। बताया जाता है की कलाश्निकोव राइफल की गोली ने उनकी जीभ को पूरी तरह से डैमेज कर दिया था। उनके चेहरे का आधा हिस्सा चला गया था। इसके बाद अगर वह बेड पर लेटे थे तो उनकी जीभ पीछे लटक जाती थी। उनकी शारीरिक चुनौतियों के बीच मिलिट्री हॉस्पिटल कोमा के दौरान उनका इलाज कर रहा था।।
वह 160 प्रादेशिक सेना (जेएके राइफल्स) के सेकेंड-इन-कमांड (2आईसी) थे। वह पूर्व में ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स की 19वीं बटालियन में तैनात थे। करणबीर सिंह नत्त को उनकी बहादुरी के लिए सेना मेडल से भी नवाजा गया था।
पंजाब के बटाला में उनका परिवार रहता है। उनके पिता जगतार सिंह सेना से कर्नल पद से रिटायर हुए हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल करणबीर सिंह का जन्म 18 मार्च 1976 को हुआ था। उनकी पत्नी नवप्रीत कौर और बेटी अश्मीत और गुनीता हैं। बेटियां बार-बार मां को पूछती थी कि उनके पापा कब उठेंगे।
साथी को बचाने के लिए आतंकियों की गोली खाई
22 नवंबर 2015 को कश्मीर घाटी में कुपवाड़ा बॉर्डर से 7 किलोमीटर दूर घने जंगल के बीच सेना का ऑपरेशन चल रहा था। हाजी नाका गांव में लेफ्टिनेंट कर्नल करणबीर सिंह साथी जवानों के साथ आतंकियों की तलाश में थे। शायद आतंकियों को पहले से ही सेवा की मूवमेंट की जानकारी थी।
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आतंकवादी छुप कर बैठे हुए थे। आतंकवादियों ने सेना पर हमला कर दिया। जब आतंकवादी गोलियां चला रहे थे तो करणवीर सिंह ने अपने साथी सैनिक को बचाने के लिए उसे धक्का मारा। इसी दौरान गोली करणवीर सिंह के जबड़े में आकर लग गई।
उन्होंने हौसला नहीं हरा और दुश्मन को करारा जवाब दिया। निचले जबड़े को गोली ने छलनी कर दिया था। इसके बावजूद में मोर्चे पर डटे रहे थे। उनको इस बहादुरी के लिए सेना मेडल दिया गया।
Colonel Karanbir Singh