aaj ka hukamnama
(अंग 636 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग सोरठि / असटपदीआ)
सोरठि महला १ ॥
जिन्ही सतिगुरु सेविआ पिआरे तिन्ह के साथ तरे ॥ तिन्हा ठाक न पाईऐ पिआरे अम्रित रसन हरे ॥ बूडे भारे भै बिना पिआरे तारे नदरि करे ॥१॥
भी तूहै सालाहणा पिआरे भी तेरी सालाह ॥ विणु बोहिथ भै डुबीऐ पिआरे कंधी पाइ कहाह ॥१॥ रहाउ ॥
सालाही सालाहणा पिआरे दूजा अवरु न कोइ ॥ मेरे प्रभ सालाहनि से भले पिआरे सबदि रते रंगु होइ ॥ तिस की संगति जे मिलै पिआरे रसु लै ततु विलोइ ॥२॥
पति परवाना साच का पिआरे नामु सचा नीसाणु ॥ आइआ लिखि लै जावणा पिआरे हुकमी हुकमु पछाणु ॥ गुर बिनु हुकमु न बूझीऐ पिआरे साचे साचा ताणु ॥३॥
हुकमै अंदरि निमिआ पिआरे हुकमै उदर मझारि ॥ हुकमै अंदरि जमिआ पिआरे ऊधउ सिर कै भारि ॥ गुरमुखि दरगह जाणीऐ पिआरे चलै कारज सारि ॥४॥
हुकमै अंदरि आइआ पिआरे हुकमे जादो जाइ ॥ हुकमे बंन्हि चलाईऐ पिआरे मनमुखि लहै सजाइ ॥ हुकमे सबदि पछाणीऐ पिआरे दरगह पैधा जाइ ॥५॥
हुकमे गणत गणाईऐ पिआरे हुकमे हउमै दोइ ॥ हुकमे भवै भवाईऐ पिआरे अवगणि मुठी रोइ ॥ हुकमु सिञापै साह का पिआरे सचु मिलै वडिआई होइ ॥६॥
आखणि अउखा आखीऐ पिआरे किउ सुणीऐ सचु नाउ ॥ जिन्ही सो सालाहिआ पिआरे हउ तिन्ह बलिहारै जाउ ॥ नाउ मिलै संतोखीआं पिआरे नदरी मेलि मिलाउ ॥७॥
काइआ कागदु जे थीऐ पिआरे मनु मसवाणी धारि ॥ ललता लेखणि सच की पिआरे हरि गुण लिखहु वीचारि ॥ धनु लेखारी नानका पिआरे साचु लिखै उरि धारि ॥८॥३॥(अर्थ)
(अंग 636 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग सोरठि / असटपदीआ)
सोरठि महला १ ॥
हे मेरे प्यारे ! जिन्होंने सतगुरु की सेवा की है, उनके साथी भी भवसागर से पार हो गए हैं। जिन की रसना हरिनामामृत चखती रहती है, उन्हें भगवान के दरबार में प्रवेश करने में कोई अड़चन नहीं आती। हे मेरे प्यारे ! जो लोग भगवान के भय बिना पापों के भार से भरे हुए हैं, वे डूब गए हैं, यदि ईश्वर उन पर दया करे तो वे भी भवसागर से पार हो सकते हैं।॥ १॥
हे प्यारे प्रभु ! मैं हमेशा ही तेरी स्तुति करता हूँ और सदा तेरी ही स्तुति करनी चाहिए। हे प्यारे ! नाम-जहाज के बिना मनुष्य भवसागर में ही डूब जाता है और वह कैसे दूसरे किनारे को पा सकता है॥ १॥ रहाउ॥
हे प्यारे ! हमें महामहिम परमात्मा की महिमा करनी चाहिए चूंकि उसके अलावा दूसरा कोई भी महिमा के योग्य नहीं। जो मेरे प्रभु की प्रशंसा करते हैं, वे श्रेष्ठ हैं, वे शब्द के साथ मग्न रहते हैं और उन्हें प्रभु के प्रेम-रंग की देन मिलती है। हे प्यारे ! यदि में भी उनकी संगति में मिल जाऊँ तो नाम-रस को लेकर तत्त्व का मंथन करूं ॥ २॥
हे प्यारे ! सत्य-नाम ही प्रभु की दरगाह में जाने के लिए परवाना है और यही जीव की प्रतिष्ठा है। इस दुनिया में आकर मनुष्य को इस प्रकार का परवाना लेकर जाना चाहिए और हुक्म करने वाले भगवान के हुक्म से परिचित होना चाहिए। गुरु के बिना परमात्मा के हुक्म की सूझ नहीं आती और उस सच्चे प्रभु का बल सत्य है॥ ३॥
हे प्यारे ! परमात्मा के हुक्म में ही प्राणी माता के गर्भ में आता है और उसके हुक्म में वह माता के गर्भ में ही विकसित होता है। हे प्यारे ! ईश्वर हुक्म में ही प्राणी माता के गर्भ में सिर के भार उल्टा होकर जन्म लेता है। हे प्यारे ! गुरुमुख मनुष्य ईश्वर दरबार में सम्मानित होता है और अपने सभी कार्य संवार कर दुनिया से चल देता है॥ ४॥
हे प्यारे ! मनुष्य भगवान के हुक्म में इस दुनिया में आया है और हुक्म में ही दुनिया से चले जाना है। हुक्म में ही मनुष्य बांधकर दुनिया से भेज दिया जाता है और मनमुख व्यक्ति भगवान के दरबार में दण्ड प्राप्त करता है। हे प्यारे ! ईश्वर के हुक्म में जीव शब्द की पहचान करता है और दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त करता है॥ ५॥
ईश्वर के हुक्म में ही मनुष्य कर्मों की गणनाएँ गिनता है और ईश्वर के हुक्म में ही अभिमान एवं अहंत्व उत्पन्न होते हैं। हे प्यारे ! ईश्वर के हुक्म में ही मनुष्य कर्मों में जकड़ा हुआ भटकता फिरता है और बुराइयों में ठगी हुई दुनिया विलाप करती है। यदि मनुष्य ईश्वर के हुक्म को समझ ले तो उसे सत्य की प्राप्ति होती है और उसकी दुनिया में बहुत शोभा होती है॥ ६॥
हे प्यारे ! भगवान के नाम का बखान करना बड़ा कठिन है, फिर हम कैसे सत्य नाम को कह एवं सुन सकते हैं। हे प्यारे ! जिन्होंने ईश्वर का स्तुतिगान किया है, मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ। ईश्वर के नाम को प्राप्त करके मुझे बड़ा संतोष हुआ है और उसकी कृपा से मैं उसके संग मिल गया हूँ॥ ७॥
हे प्यारे ! यदि मेरा यह शरीर कागज बन जाए मन को दवात मान लिया जाए और यदि मेरी यह जिव्हा सत्य की कलम बन जाए तो मैं विचार करके उस परमेश्वर की ही महिमा लिखूंगा। नानक का कथन है कि हे प्यारे ! वह लिखने वाला धन्य है जो सत्य नाम को अपने हृदय में धारण करता और लिखता है॥ ८ ॥ ३॥
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