Friday, September 20, 2024
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हुक्मनामा श्री दरबार साहिब (13 फ़रवरी 2024)

aaj ka hukamnama

(अंग 688 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग धनासरी / छंत)
धनासरी महला १ ॥
जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥
तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥ हुकमी होइ निबेड़ु भरमु चुकाइसी जीउ ॥ गुरु भरमु चुकाए अकथु कहाए सच महि साचु समाणा ॥ आपि उपाए आपि समाए हुकमी हुकमु पछाणा ॥ सची वडिआई गुर ते पाई तू मनि अंति सखाई ॥ नानक साहिबु अवरु न दूजा नामि तेरै वडिआई ॥२॥
तू सचा सिरजणहारु अलख सिरंदिआ जीउ ॥ एकु साहिबु दुइ राह वाद वधंदिआ जीउ ॥ दुइ राह चलाए हुकमि सबाए जनमि मुआ संसारा ॥ नाम बिना नाही को बेली बिखु लादी सिरि भारा ॥ हुकमी आइआ हुकमु न बूझै हुकमि सवारणहारा ॥ नानक साहिबु सबदि सिञापै साचा सिरजणहारा ॥३॥
भगत सोहहि दरवारि सबदि सुहाइआ जीउ ॥ बोलहि अम्रित बाणि रसन रसाइआ जीउ ॥ रसन रसाए नामि तिसाए गुर कै सबदि विकाणे ॥ पारसि परसिऐ पारसु होए जा तेरै मनि भाणे ॥ अमरा पदु पाइआ आपु गवाइआ विरला गिआन वीचारी ॥ नानक भगत सोहनि दरि साचै साचे के वापारी ॥४॥
भूख पिआसो आथि किउ दरि जाइसा जीउ ॥ सतिगुर पूछउ जाइ नामु धिआइसा जीउ ॥ सचु नामु धिआई साचु चवाई गुरमुखि साचु पछाणा ॥ दीना नाथु दइआलु निरंजनु अनदिनु नामु वखाणा ॥ करणी कार धुरहु फुरमाई आपि मुआ मनु मारी ॥ नानक नामु महा रसु मीठा त्रिसना नामि निवारी ॥५॥२॥(अर्थ)
(अंग 688 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग धनासरी / छंत)
धनासरी महला १ ॥
हे पूज्य परमेश्वर ! मैं तेरे नाम-सिमरन द्वारा ही जीवित हूँ और मेरे मन में आनंद बना रहता है। सत्यस्वरूप परमेश्वर का नाम सत्य है और उस गोविन्द के गुण भी सत्य हैं। गुरु का ज्ञान बोध करवाता है कि सृष्टि का सृजनहार परमेश्वर अनंत है, जिसने यह सृष्टि रचना की है, उसने ही इसका विनाश किया है। जब प्रभु के हुक्म द्वारा भेजा हुआ (मृत्यु का) निमंत्रण आ जाता है तो कोई भी प्राणी उसे टाल नहीं सकता। वह स्वयं ही जीवों को उत्पन्न करके देखता रहता है अर्थात् उनकी देखभाल करता रहता है और स्वयं ही जीवों के किए कर्मो अनुसार उनके माथे पर किस्मत का लेख लिखता है।उसने स्वयं ही जीवों को अपने बारे में ज्ञान प्रदान किया है। हे नानक ! वह मालिक-परमेश्वर अगम्य एवं अगोचर है और मैं उसके सत्य नाम की स्तुति करने से ही जीवित हूँ॥ १॥
हे ईश्वर ! तुम्हारे जैसा अन्य कोई भी नहीं है। जो भी जन्म लेकर दुनिया में आया है, वह यहाँ से चला जाएगा। तेरे हुक्म से ही जीवों के किए कर्मो का निपटारा होता है और तू ही उनका भ्रम दूर करता है। हे भाई ! गुरु अपने सेवक का भ्रम दूर कर देता है और उससे अकथनीय प्रभु की स्तुति करवाता है। फिर वह सत्यपुरुष सत्य में ही समा जाता है। भगवान स्वयं ही जीवों को पैदा करता है और स्वयं ही उन्हें पुनः अपने में ही विलीन कर लेता है। मैंने हुक्म करने वाले भगवान का हुक्म पहचान लिया है। हे मालिक प्रभु ! जिसने गुरु से तेरे नाम की सच्ची शोभा प्राप्त कर ली है, तू उसके मन में आकर बस जाता है और अन्तिम काल में भी उसका साथी बनता है। नानक का कथन है कि हे प्रभु ! तेरे सिवाय दूसरा कोई भी मालिक नहीं है और तेरे सत्य नाम द्वारा ही जीव को तेरे दरबार में बड़ाई मिलती है।॥ २॥
हे परमेश्वर ! एक तू ही सच्चा सृजनहार एवं अलख है और तूने ही सब जीवों को पैदा किया है। सब का मालिक एक परमात्मा ही है परन्तु उससे मिलने के कर्म मार्ग एवं ज्ञान मार्ग-उन दो प्रचलित मागों ने जीवों में परस्पर विवाद बढ़ा दिए हैं। परमेश्वर ने अपने हुक्म में समस्त जीवों को इन दो मार्गों पर चलाया हुआ है। उसके हुक्म से ही यह जगत जन्मता एवं मरता रहता है। जीव ने व्यर्थ ही माया रूपी विष का भार उठाया हुआ है परन्तु परमात्मा के नाम बिना कोई भी उसका साथी नहीं बनता। जीव तो परमात्मा के हुक्म से ही जगत में आया है। परन्तु वह उसके हुक्म को नहीं समझता। प्रभु स्वयं ही अपने हुक्म में जीव को सुन्दर बनाने वाला है। हे नानक ! मालिक-परमेश्वर की पहचान तो शब्द के द्वारा ही होती है और वही सच्चा सृजनहार है॥ ३॥
भगवान के भक्त उसके दरबार में बैठे बड़े सुन्दर लगते हैं और उनका जीवन शब्द से ही सुन्दर बना हुआ है। वह अपने मुख से अमृत वाणी बोलते हैं और उन्होंने अपनी रसना को अमृत रस पिलाया हुआ है। वे अमृत रस के ही प्यासे होते हैं और अपनी रसना को अमृत रस ही पिलाते रहते हैं। वे तो गुरु के शब्द पर ही न्योछावर होते हैं। हे प्रभु ! जब वे तेरे मन को अच्छे लगते हैं तो वे पारस रूपी गुरु को स्पर्श करके स्वयं भी पारस (रूपी गुरु) बन जाते हैं। वे अपने अहंकार को समाप्त करके अमर पदवी प्राप्त कर लेते हैं।कोई विरला पुरुष ही इस ज्ञान पर चिंतन करता है। हे नानक !भक्त सत्य के द्वार पर ही शोभा देते हैं और सत्य नाम के ही व्यापारी हैं।॥ ४॥

हे भाई ! मैं तो माया का भूखा और प्यासा हैं। फिर मैं भगवान के दरबार पर कैसे जा सकता हूँ? मैं जाकर अपने गुरु से पूछँगा एवं भगवान का नाम-सिमरन करूँगा। मैं अपने मन में सत्यनाम का ही ध्यान-मनन करता हूँ। अपने मुँह से सत्य नाम को जपता हूँ। अब तो मैं रात-दिन दीनानाथ, दयालु एवं पवित्र प्रभु के नाम का ही जाप करता हूँ। यह नाम-सिमरन करने का कार्य मुझे परमात्मा ने प्रारम्भ से ही करने की आज्ञा की है। इस तरह अहंकार मिट गया है और मन नियंत्रण में आ गया है। हे नानक ! नाम महां मीठा रस है और नाम ने मेरी माया की तृष्णा दूर कर दी है॥ ५॥ २॥

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