Today Hukamnama
(अंग 676 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अर्जन देव जी / राग धनासरी / -)
धनासरी महला ५ ॥
मोहि मसकीन प्रभु नामु अधारु ॥ खाटण कउ हरि हरि रोजगारु ॥ संचण कउ हरि एको नामु ॥ हलति पलति ता कै आवै काम ॥१॥
नामि रते प्रभ रंगि अपार ॥ साध गावहि गुण एक निरंकार ॥ रहाउ ॥
साध की सोभा अति मसकीनी ॥ संत वडाई हरि जसु चीनी ॥ अनदु संतन कै भगति गोविंद ॥ सूखु संतन कै बिनसी चिंद ॥२॥
जह साध संतन होवहि इकत्र ॥ तह हरि जसु गावहि नाद कवित ॥ साध सभा महि अनद बिस्राम ॥ उन संगु सो पाए जिसु मसतकि कराम ॥३॥
दुइ कर जोड़ि करी अरदासि ॥ चरन पखारि कहां गुणतास ॥ प्रभ दइआल किरपाल हजूरि ॥ नानकु जीवै संता धूरि ॥*४॥२॥२३॥(अर्थ)
(अंग 676 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अर्जन देव जी / राग धनासरी / -)
धनासरी महला ५ ॥
मुझ विनीत को प्रभु का नाम ही एक सहारा है। मेरे कमाने के लिए हरि-नाम ही मेरा रोजगार है। जिस व्यक्ति के पास संचित करने के लिए एकमात्र हरि-नाम है, यह नाम ही इहलोक एवं आगे परलोक में उसके काम आता है॥ १॥
प्रभु के प्रेम रंग एवं नाम में लीन होकर साधुजन तो केवल निराकार परमेश्वर का ही गुणगान करते हैं।॥ रहाउ ॥
साधु की शोभा उसकी अत्यंत विनम्रता में है। संत का बड़प्पन उसके हरि-यश गायन करने से जाना जाता है। परमात्मा की भक्ति उनके हृदय में आनंद उत्पन्न करती है। संतों के मन में यही सुख की अनुभूति होती है कि उनकी चिंता का नाश हो जाता है॥ २॥
जहाँ भी साधु-संत एकत्र होते हैं, वहाँ ही वे संगीत एवं काव्य द्वारा हरि का यश-गान करते हैं। साधुओं की सभा में आनंद एवं शान्ति की प्राप्ति होती है। उनकी संगति भी वही मनुष्य करता है, जिसके मस्तक पर पूर्व कर्मों द्वारा ऐसा भाग्य लिखा होता है॥ ३॥
मैं अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि मैं संतों के चरण धोता रहूँ और गुणों के भण्डार प्रभु का ही नाम-सिमरन करने में मग्न रहूँ। जो हमेशा ही दयालु एवं कृपालु प्रभु की उपस्थिति में रहते हैं,” नानक तो उन संतों की चरण-धूलि के सहारे ही जीवित है।॥ ४॥ २॥ २३॥
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