रामकली महला ५ ॥
अंगीकारु कीआ प्रभि अपनै बैरी सगले साधे ॥ जिनि बैरी है इहु जगु लूटिआ ते बैरी लै बाधे ॥१॥
सतिगुरु परमेसरु मेरा ॥ अनिक राज भोग रस माणी नाउ जपी भरवासा तेरा ॥१॥ रहाउ ॥
चीति न आवसि दूजी बाता सिर ऊपरि रखवारा ॥ बेपरवाहु रहत है सुआमी इक नाम कै आधारा ॥२॥
पूरन होइ मिलिओ सुखदाई ऊन न काई बाता ॥ ततु सारु परम पदु पाइआ छोडि न कतहू जाता ॥३॥
बरनि न साकउ जैसा तू है साचे अलख अपारा ॥ अतुल अथाह अडोल सुआमी नानक खसमु हमारा ॥४॥५॥(अर्थ)
(अंग 884 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अर्जन देव जी / राग रामकली / -)
रामकली महला ५ ॥
प्रभु ने मेरा साथ दिया है तथा उसने मेरे सारे वैरी (काम, क्रोध इत्यादि) वशीभूत कर दिए हैं। जिन वैरियों ने यह सारा जग लूट लिया है, उसने वे वैरी पकड़ कर बांध दिए हैं।॥ १॥
सतगुरु ही मेरा परमेश्वर है। मैं अनेक राज सुख एवं खुशियाँ प्राप्त करता हूँ। हे ईश्वर ! मुझे तेरा ही भरोसा है और तेरा ही नाम जपता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
मुझे कोई अन्य बात याद नहीं आती, क्योंकि परमेश्वर ही मेरा रखवाला है। हे स्वामी ! एक तेरे नाम के आधार से मैं बेपरवाह रहता हूँ॥ २॥
मुझे सुखदायक प्रभु मिल गया है, जिससे मैं पूर्ण सुखी हो गया हूँ तथा मुझे किसी बात की कोई कमी नहीं रही। तत्व सार रूपी परमपद पा लिया है और उसे छोड़कर कहीं नहीं जाता॥ ३॥
हे सच्चे अलक्ष्य अपरंपार ! जैसा तू है, मैं वर्णन नहीं कर सकता। हे नानक ! मेरा मालिक अतुलनीय, अथाह, अडोल एवं सारे जगत् का स्वामी है॥ ४॥ ५ ॥
श्री दरबार साहिब अमृतसर से आज का हुकमनामा
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