Ajj Ka Hukamnama
नदी तरंदड़ी मैडा खोजु न खु्मभै मंझि मुहबति तेरी ॥ तउ सह चरणी मैडा हीअड़ा सीतमु हरि नानक तुलहा बेड़ी ॥१॥
मः ५ ॥
जिन्हा दिसंदड़िआ दुरमति वंञै मित्र असाडड़े सेई ॥ हउ ढूढेदी जगु सबाइआ जन नानक विरले केई ॥२॥
पउड़ी ॥
आवै साहिबु चिति तेरिआ भगता डिठिआ ॥ मन की कटीऐ मैलु साधसंगि वुठिआ ॥ जनम मरण भउ कटीऐ जन का सबदु जपि ॥ बंधन खोलन्हि संत दूत सभि जाहि छपि ॥ तिसु सिउ लाइन्हि रंगु जिस दी सभ धारीआ ॥ ऊची हूं ऊचा थानु अगम अपारीआ ॥ रैणि दिनसु कर जोड़ि सासि सासि धिआईऐ ॥ जा आपे होइ दइआलु तां भगत संगु पाईऐ ॥९॥(अर्थ)
श्लोक महला ५॥
हे परमेश्वर ! जगत रूपी नदिया तैरते हुए मेरा पैर नहीं धंसता, क्योंकि मेरी तुझ से ही मुहब्बत है। तेरे चरणों में मेरा मन सिला हुआ है, जगत रूपी नदिया पार करने के लिए तू ही नानक की तुलहा एवं नाव है॥ १॥
महला ५॥
जिनके दर्शन करने से दुर्मति नाश हो जाती है, वही हमारे मित्र हैं। हे नानक ! मैंने सारा जगत खोज लिया परन्तु ऐसे विरले ही पुरुष मिलते हैं।॥ २॥
पउड़ी ॥
हे मालिक ! तेरे भक्तों के दर्शनं करने से तुम स्वयं ही हमारे मन में आ जाते हो। साधसंगति में रहने से मन की मैल दूर हो जाती है। भक्तजनों के शब्द को जपने से जन्म-मरण का डर दूर हो जाता है। संत माया संबंधी तमाम बन्धन खोल देते हैं, जिसके फलस्वरूप माया के दूत-काम, क्रोध, लोभ मोह इत्यादि लुप्त हो जाते हैं। संतजन उस ईश्वर के साथ हमारा प्रेम उत्पन्न कर देते हैं, जिसने इस सृष्टि की रचना की है। उस परमात्मा का निवास स्थान सबसे ऊँचा है, जो अगम्य एवं अपार है। हाथ जोड़कर रात-दिन अपनी प्रत्येक सांस से उसका ध्यान करना चाहिए। जब परमेश्वर स्वयं दयालु होता है तो भक्तों की संगति प्राप्त होती है॥ ६॥
Ajj Ka Hukamnama