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श्री दरबार साहिब अमृतसर से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

धनासरी महला ४ ॥
मेरे साहा मै हरि दरसन सुखु होइ ॥ हमरी बेदनि तू जानता साहा अवरु किआ जानै कोइ ॥ रहाउ ॥साचा साहिबु सचु तू मेरे साहा तेरा कीआ सचु सभु होइ ॥ झूठा किस कउ आखीऐ साहा दूजा नाही कोइ ॥१॥सभना विचि तू वरतदा साहा सभि तुझहि धिआवहि दिनु राति ॥ सभि तुझ ही थावहु मंगदे मेरे साहा तू सभना करहि इक दाति ॥२ सभु को तुझ ही विचि है मेरे साहा तुझ ते बाहरि कोई नाहि ॥ सभि जीअ तेरे तू सभस दा मेरे साहा सभि तुझ ही माहि समाहि ॥३ सभना की तू आस है मेरे पिआरे सभि तुझहि धिआवहि मेरे साह ॥ जिउ भावै तिउ रखु तू मेरे पिआरे सचु नानक के पातिसाह ॥४॥७॥१३॥(अर्थ)


धनासरी महला ४ ॥
हे मेरे स्वामी ! मैं तो तेरे दर्शन करके ही सुखी होता हूँ। मेरी वेदना तू ही जानता है, अन्य कोई क्या जान सकता है॥ रहाउ ॥
हे मेरे स्वामी ! तू ही सच्चा मालिक है, सदैव सत्य है और जो कुछ तू करता है, वह सब सत्य है। हे स्वामी ! जब तेरे सिवाय दूसरा कोई है ही नहीं, फिर झूठा किसे कहा जाए ? ॥ १॥
सब में तू ही समाया हुआ है और सभी तुझे दिन-रात स्मरण करते रहते हैं। हे स्वामी ! सभी तुझ से ही दान माँगते हैं और एक तू ही सब को देता रहता है॥ २॥
हे मेरे मालिक ! सभी जीव तेरे हुक्म में हैं और कोई भी तेरे हुक्म से बाहर नहीं है। सभी जीव तेरे हैं, तू सबका स्वामी है और सभी तुझ में ही विलीन हो जाते हैं।॥ ३॥
हे मेरे प्यारे स्वामी ! तू सबकी आशा है और सभी जीव तेरा ध्यान-मनन करते रहते हैं। हे प्यारे ! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही तू मुझे रख।हे नानक के पातशाह ! तू सदैव सत्य है॥ ४॥ ७॥ १३॥

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