Today Hukamnama
सलोकु मः ३ ॥
सतिगुर ते जो मुह फिरे से बधे दुख सहाहि ॥ फिरि फिरि मिलणु न पाइनी जमहि तै मरि जाहि ॥ सहसा रोगु न छोडई दुख ही महि दुख पाहि ॥ नानक नदरी बखसि लेहि सबदे मेलि मिलाहि ॥१॥
मः ३ ॥
जो सतिगुर ते मुह फिरे तिना ठउर न ठाउ ॥ जिउ छुटड़ि घरि घरि फिरै दुहचारणि बदनाउ ॥ नानक गुरमुखि बखसीअहि से सतिगुर मेलि मिलाउ ॥२॥
(गुरू रामदास जी / राग सोरठि / सोरठि की वार (म: ४))
पउड़ी ॥
जो सेवहि सति मुरारि से भवजल तरि गइआ ॥ जो बोलहि हरि हरि नाउ तिन जमु छडि गइआ ॥ से दरगह पैधे जाहि जिना हरि जपि लइआ ॥ हरि सेवहि सेई पुरख जिना हरि तुधु मइआ ॥ गुण गावा पिआरे नित गुरमुखि भ्रम भउ गइआ ॥७॥(अर्थ)
(अंग 645 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग सोरठि / सोरठि की वार (म: ४))
श्लोक महला ३॥
जो व्यक्ति सतगुरु की तरफ से मुँह मोड़ लेता है, वे यमपुरी में बंधे हुए दुःख सहन करता रहता है। वह बार-बार जन्मता-मरता रहता है और उसका भगवान से मिलन नहीं होता। उसका संशय-चिंता का रोग दूर नहीं होता और दुःख में ही वह बहुत दुःखी होता रहता है। हे नानक ! यद्यपि परमात्मा अपनी कृपा-दृष्टि से जीव को क्षमा कर दे तो वह उसे शब्द द्वारा अपने साथ मिला लेता है॥ १॥
महला ३॥
जो व्यक्ति सतगुरु की तरफ से मुंह मोड़ लेते हैं, अर्थात् विमुख हो जाते हैं, उन्हें कहीं भी शरण नहीं मिलती। वे तो छोड़ी हुई स्त्री की भांति घर-घर भटकते रहते हैं और दुराचारिणी के नाम से बदनाम होते हैं। हे नानक ! जिन गुरुमुखों को क्षमादान मिल जाता है, सतगुरु उन्हें ईश्वर से मिला देता है॥ २॥
(गुरू रामदास जी / राग सोरठि / सोरठि की वार (म: ४))
पउड़ी॥
जो व्यक्ति परम-सत्य प्रभु की आराधना करते हैं, वे भवसागर से पार हो जाते हैं। जो हरि-नाम बोलते रहते हैं, उन्हें यमराज भी छोड़कर दूर हो गया है। जो परमात्मा का जाप करते हैं, वे सत्कृत होकर उसके दरबार में जाते हैं। हे परमेश्वर ! जिन पर तुम्हारी कृपा है, वही पुरुष तेरी उपासना करते हैं। हे मेरे प्यारे ! मैं सर्वदा ही तेरे गुण गाता रहता हूँ और गुरु के माध्यम से मेरा भ्रम एवं भय नष्ट हो गया है॥ ७ ॥
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