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श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

गूजरी की वार महला ३
सिकंदर बिराहिम की वार की धुनी गाउणी
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोकु मः ३ ॥
इहु जगतु ममता मुआ जीवण की बिधि नाहि ॥ गुर कै भाणै जो चलै तां जीवण पदवी पाहि ॥ ओइ सदा सदा जन जीवते जो हरि चरणी चितु लाहि ॥ नानक नदरी मनि वसै गुरमुखि सहजि समाहि ॥१॥
मः ३ ॥
अंदरि सहसा दुखु है आपै सिरि धंधै मार ॥ दूजै भाइ सुते कबहि न जागहि माइआ मोह पिआर ॥ नामु न चेतहि सबदु न वीचारहि इहु* मनमुख का आचारु ॥ हरि नामु न पाइआ जनमु बिरथा गवाइआ नानक जमु मारि करे खुआर ॥२॥
पउड़ी ॥
आपणा आपु उपाइओनु तदहु होरु न कोई ॥ मता मसूरति आपि करे जो करे सु होई ॥ तदहु आकासु न पातालु है ना त्रै लोई ॥ तदहु आपे आपि निरंकारु है ना ओपति होई ॥ जिउ तिसु भावै तिवै करे तिसु बिनु अवरु न कोई ॥१॥

(अर्थ)

गूजरी की वार महला ३
सिकंदर बिराहिम की वार की धुनी गाउणी
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
श्लोक महला ३॥
यह जगत ममता में फँसकर मर रहा है और इसे जीने की विधि का कोई ज्ञान नहीं। जो व्यक्ति गुरु की रज़ा अनुसार आचरण करता है, उसे जीवन पदवी की उपलिब्ध होती है। जो प्राणी हरि के चरणों में अपना चित्त लगाते हैं, वे सदैव जीवित रहते हैं। हे नानक ! अपनी करुणा-दृष्टि से प्रभु मन में निवास करता है तथा गुरुमुख सहज ही समा जाता है॥ १॥
महला ३॥
जिन लोगों के मन में दुविधा एवं मोह-माया का दुख है, उन्होंने खुद ही दुनिया की उलझनों के साथ निपटना स्वीकार किया है। वे द्वैतभाव में सोए हुए कभी भी नहीं जागते, क्योंकि उनका माया से मोह एवं प्रेम बना हुआ है। वह प्रभु-नाम को स्मरण नहीं करते और न ही शब्द-गुरु का चिंतन करते हैं। स्वेच्छाचारियों का ऐसा जीवन-आचरण है। हे नानक ! वे हरेि के नाम को प्राप्त नहीं करते एवं अपना अनमोल जन्म व्यर्थ ही गंवा देते हैं, इसलिए यमदूत उन्हें दण्ड देकर अपमानित करता है॥ २ ॥
पउड़ी।
जब परमात्मा ने अपने आपकों उत्पन्न किया, तब दूसरा कोई नहीं था। वह अपने आप से ही तब सलाह-मशवरा करता था। वह जो कुछ करता था, वही होता था। तब न ही आकाश था, न ही पाताल था और न ही तीन लोक थे। तब केवल निराकार प्रभु आप ही विद्यमान था और कोई उत्पत्ति नहीं हुई थी। जैसे उसे अच्छा लगता था, वैसे ही वह करता था एवं उसके अलावा दूसरा कोई नहीं था ॥ १॥

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