Today Hukamnama
सलोकु ॥
सुभ चिंतन गोबिंद रमण निरमल साधू संग ॥ नानक नामु न विसरउ इक घड़ी करि किरपा भगवंत ॥१॥
छंत ॥
भिंनी रैनड़ीऐ चामकनि तारे ॥ जागहि संत जना मेरे राम पिआरे ॥ राम पिआरे सदा जागहि नामु सिमरहि अनदिनो ॥ चरण कमल धिआनु हिरदै प्रभ बिसरु नाही इकु खिनो ॥ तजि मानु मोहु बिकारु मन का कलमला दुख जारे ॥ बिनवंति नानक सदा जागहि हरि दास संत पिआरे ॥१॥
मेरी सेजड़ीऐ आड्मबरु बणिआ ॥ मनि अनदु भइआ प्रभु आवत सुणिआ ॥ प्रभ मिले सुआमी सुखह गामी चाव मंगल रस भरे ॥ अंग संगि लागे दूख भागे प्राण मन तन सभि हरे ॥ मन इछ पाई प्रभ धिआई संजोगु साहा सुभ गणिआ ॥ बिनवंति नानक मिले स्रीधर सगल आनंद रसु बणिआ ॥२॥
मिलि सखीआ पुछहि कहु कंत नीसाणी ॥ रसि प्रेम भरी कछु बोलि न जाणी ॥ गुण गूड़ गुपत अपार करते निगम अंतु न पावहे ॥ भगति भाइ धिआइ सुआमी सदा हरि गुण गावहे ॥ सगल गुण सुगिआन पूरन आपणे प्रभ भाणी ॥ बिनवंति नानक रंगि राती प्रेम सहजि समाणी ॥३॥
सुख सोहिलड़े हरि गावण लागे ॥ साजन सरसिअड़े दुख दुसमन भागे ॥ सुख सहज सरसे हरि नामि रहसे प्रभि आपि किरपा धारीआ ॥ हरि चरण लागे सदा जागे मिले प्रभ बनवारीआ ॥ सुभ दिवस आए सहजि पाए सगल निधि प्रभ पागे ॥ बिनवंति नानक सरणि सुआमी सदा हरि जन तागे ॥४॥१॥१०॥
(अर्थ)
आसा महला ५ छंत घरु ७
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
श्लोक॥
मैं शुभ चिंतन करता रहूँ, गोविंद का नाम याद करता रहूँ और साधु की निर्मल संगति करता रहूँ। नानक की प्रार्थना है कि हे भगवान ! मुझ पर ऐसी कृपा करो कि मैं एक क्षण भर के लिए भी तेरा नाम न भूलूं।॥ १॥
छंद॥
जब ओस से भीगी हुई रात्रि में तारे चमकते हैं तो मेरे राम के प्यारे संतजन इस सुहावनी रात्रि को जागते रहते हैं। वे राम के प्यारे संतजन सदैव ही जागते हैं और नित्य ही नाम को याद करते रहते हैं। वे अपने हृदय में प्रभु के चरण-कमल का ध्यान करते हैं और एक क्षण भर के लिए भी उसे विस्मृत नहीं करते। वे मन का अहंकार, मोह, विकार इत्यादि बुराइयों को त्याग कर दु:खों को नाश कर देते हैं। नानक वन्दना करता है कि हरि के दास प्यारे संतजन सदैव ही जागते रहते हैं॥ १ ॥
मेरे मन के सेज की भव्य सजावट हो गई है। जब से मैंने सुना है कि मेरा प्रभु आ रहा है तो मेरे मन में आनंद उत्पन्न हो गया है। स्वामी प्रभु को मिलकर मैं सुखी हो गई हूँ और चाव, मंगल के रस से भर गई हूँ। प्रभु मेरे अंग-संग लग गया है, जिससे दुःख भाग गए हैं और मेरा मन-तन फूल की तरह खिल गया है। प्रभु का ध्यान करने से मेरी मनोकामना पूरी हो गई है, मैं अपने विवाह संयोग के समय को शुभ मानती हूँ। नानक वन्दना करता है कि श्रीधर प्रभु से मिलकर मुझे समस्त खुशियों का रस प्राप्त हो गयाहै॥ २॥
मेरी सखियाँ मुझसे मिलकर पूछती हैं कि हमें अपने प्रियतम-पति की कोई निशानी बताओ। उसके प्रेम के रस से मैं इतनी भर गई थी कि मैं कुछ भी कह न सकी। जगत-रचयिता प्रभु के गुण गहन, गुप्त एवं अपार हैं और वेद भी उसका अन्त नहीं पा सकते। मैं भक्ति-भाव से ज्ञान से पूर्ण होने के कारण मैं अपने प्रभु को अच्छी लगने लग गई हूँ। सभी गुणों और आध्यात्मिक ज्ञान से भरी हुई , मैं अपने भगवान को प्रसन्न हो गई हूँ। नानक विनती करता है कि वह प्रभु के प्रेम रंग में रंगी हुई है और सहज ही उसमें समा गई है॥ ३॥
जब मैं भगवान की खुशी के गीत गाने लग गया तो मेरे सज्जन-सत्य, संतोष, दया एवं धर्म इत्यादि प्रसन्न हो गए मेरे दुश्मन-काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि दुःख भाग गए। मेरी खुशी एवं सुख बढ़ गए, मैं प्रभु के नाम में आनंद प्राप्त करने लगा क्योंकि भगवान ने स्वयं मुझ पर कृपा की है। मैं हरि के सुन्दर चरणों से जुड़ गया हूँ और सदा सावधान रहने के कारण मैं बनवारी प्रभु से मिल गया हूँ। अब शुभ दिन आ गए हैं और मैंने सहज सुख प्राप्त कर लिया है। प्रभु के चरणों की सेवा करने से मुझे निधियाँ मिल गई हैं। नानक प्रार्थना करता है कि हे जगत के स्वामी ! भक्तजन सदैव ही तेरी शरण चाहते हैं॥ ४ ॥ १ ॥ १० ॥
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