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HomeUncategorizedश्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

रामकली महला ५ ॥
जो तिसु भावै सो थीआ ॥ सदा सदा हरि की सरणाई प्रभ बिनु नाही आन बीआ ॥१॥ रहाउ ॥
पुतु कलत्रु लखिमी दीसै इन महि किछू न संगि लीआ ॥ बिखै ठगउरी खाइ भुलाना माइआ मंदरु तिआगि गइआ ॥१॥
निंदा करि करि बहुतु विगूता गरभ जोनि महि किरति पइआ ॥ पुरब कमाणे छोडहि नाही जमदूति ग्रासिओ महा भइआ ॥२॥
बोलै झूठु कमावै अवरा त्रिसन न बूझै बहुतु हइआ ॥ असाध रोगु उपजिआ संत दूखनि देह बिनासी महा खइआ ॥३॥
जिनहि निवाजे तिन ही साजे आपे कीने संत जइआ ॥ नानक दास कंठि लाइ राखे करि किरपा पारब्रहम मइआ ॥४॥४४॥५५॥

(अर्थ)
रामकली महला ५ ॥
जो ईश्वर को उपयुक्त लगा है, वही हुआ है। सदैव भगवान की शरण ग्रहण करो, उसके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है॥ १॥ रहाउ॥
पुत्र, स्त्री एवं लक्ष्मी जो कुछ नजर आता है, इन में से कुछ भी जीव अपने साथ नहीं लेकर गया। माया रूपी ठग बूटी को खाकर जीव भूला हुआ है, लेकिन अन्त में माया एवं घर इत्यादि सबकुछ त्याग वह चला जाता है॥ १॥
दूसरों की निंदा कर करके जीव बहुत दुखी हुआ है एवं अपने कर्मों के अनुसार गर्भ योनियों में पड़ता रहा है। पूर्व जन्म में किए कर्म जीव का साथ नहीं छोड़ते और भयानक यमदूत उसे अपना ग्रास बना लेते हैं।॥ २॥
मनुष्य झूठ बोलता है, वह बताता कुछ और है और करता कुछ अन्य है, यह बड़ी शर्म की बात है कि उसकी तृष्णा नहीं बुझती। संतों पर झूठे दोष लगाने से उसके शरीर में असाध्य रोग पैदा हो जाता है, जिससे उसका शरीर नष्ट हो जाता है॥ ३ ॥
जिस परमात्मा ने संतों को यश प्रदान किया है, उसने ही उन्हें पैदा किया है और स्वयं ही संतों की जय-जयकार करवाई है। हे नानक ! परब्रह्म ने अपनी कृपा करके संतों को गले से लगाकर रखा हुआ है॥ ४॥ ४४॥ ५५ ॥

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