Today Hukamnama
जैतसरी महला ९ ॥
हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥ जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥
महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥ भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥
कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ उठि धाइआ ॥ घट ही भीतरि बसै निरंजनु ता को मरमु न पाइआ ॥२॥
नाहिन गुनु नाहिन कछु जपु तपु कउनु करमु अब कीजै ॥ नानक हारि परिओ सरनागति अभै दानु प्रभ दीजै ॥३॥२॥
(अर्थ)
जैतसरी महला ९ ॥
हे परमात्मा ! मेरी लाज बचा लो। मेरे हृदय में मृत्यु का भय निवास कर चुका है। अतः हे कृपानिधि ! मैंने तेरी ही शरण ली है॥१॥ रहाउ॥
में बड़ा पतित, मूर्ख एवं लालची हूँ और पाप कर्म करते-करते अब मैं थक चुका हूँ। मृत्यु का भय मुझे भूलता नहीं और इस चिन्ता ने मेरे शरीर को जलाकर रख दिया है॥१॥
अपनी मुक्ति हेतु मैंने अनेक उपाय किए हैं और दसों दिशाओं में भी भागता रहता हूँ। भगवान मेरे हृदय में ही निवास कर रहा है किन्तु उसके भेद को नहीं जाना॥२॥
हे प्रभु ! मुझ में कोई गुण नहीं और न ही कुछ सिमरन एवं तपस्या की है। फिर तुझे प्रसन्न करने हेतु अब कौन-सा कर्म करूँ ? नानक का कथन है कि हे प्रभु ! अब मैं निराश होकर तेरी शरण में आया हूँ, अतः मुझे अभय दान (मोक्ष दान) प्रदान कीजिए॥३॥२॥
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