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धनासरी महला १ घरु १ चउपदे
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥ दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥
साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥
अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ ॥ सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ ॥२॥
दइआल तेरै नामि तरा ॥ सद कुरबाणै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥
सरबं साचा एकु है दूजा नाही कोइ ॥ ता की सेवा सो करे जा कउ नदरि करे ॥३॥
तुधु बाझु पिआरे केव रहा ॥ सा वडिआई देहि जितु नामि तेरे लागि रहां ॥ दूजा नाही कोइ जिसु आगै पिआरे जाइ कहा ॥१॥ रहाउ ॥
सेवी साहिबु आपणा अवरु न जाचंउ कोइ ॥ नानकु ता का दासु है बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥४॥
साहिब तेरे नाम विटहु बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥(अर्थ)
(अंग 660 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू नानक देव जी / राग धनासरी / -)
धनासरी महला १ घरु १ चउपदे
औंकार वही एक है, उसका नाम सत्य है, वह सृष्टि एवं जीवो की रचना करने वाला है, वह सर्वशक्तिमान है, उसे किसी प्रकार का कोई भय नहीं है, वह निर्वेर, अकालमूर्ति कोई योनि धारण नहीं करता, वह स्वयंभू है, जिसे गुरु की कृपा से ही पाया जाता है।
मेरी आत्मा डर रही है, मैं किसके पास पुकार करूं ? इसलिए मैंने तो सब दुःख भुलाने वाले परमात्मा की ही उपासना की है, जो सदैव ही जीवो को देने वाला है ॥ १ ॥
मेरा मालिक नित्य ही नविन है और वह हमेशा है सबको देने वाला है |॥ १ ॥ रहाउ॥
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निशदिन उस मालिक की सेवा करते रहना चाहिए, क्योंकि अंत में वही यम से मुक्त करवाता है। हे मेरी प्राण रूपी कामिनी ! प्रभु का नाम सुनकर तेरा भवसागर से कल्याण हो जाएगा ॥२ ॥
हे दयालु परमात्मा ! तेरे नाम द्वारा मैं संसार-सागर से पार हो जाऊँगा। मैं तुझ पर सदैव ही कुर्बान जाता हूँ।॥ १ ॥ रहाउ॥
सबका मालिक एक सत्यस्वरूप ईश्वर ही सर्वव्यापी है, अन्य दूसरा कोई सत्य नहीं है। उसकी सेवा वही करता है, जिस पर वह अपनी करुणा-दृष्टि करता है॥३।
हे मेरे प्यारे ! तेरे बिना मैं कैसे रह सकता हूँ? मुझे वही बड़ाई प्रदान करो, जिससे मैं तेरे नाम-सिमरन में लगा रहूँ। हे मेरे प्यारे! कोई अन्य दूसरा है ही नहीं, जिसके समक्ष मैं अनुरोध करूं।॥ १ ॥ रहाउ ॥
मैं तो अपने उस मालिक की ही सेवा करता रहता हूँ एवं किसी दूसरे से मैं कुछ नहीं माँगता। नानक तो उस मालिक का दास है और हर क्षण उस पर टुकड़े-टुकड़े होकर कुर्बान जाता है।४।
हे मेरे मालिक ! हर क्षण मैं तेरे नाम पर टुकड़े-टुकड़े होकर कुर्बान जाता हूँ।॥ १ ॥ रहाउ।४ ॥१॥
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