Citizenship Act 1955 Section 6A
सुप्रीम कोर्ट ने सिटिजनशिप एक्ट की धारा 6A की वैधता को बरकरार रखा है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने इस पर गुरुवार को फैसला सुनाया। बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे। फैसले पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सहित चार जजों ने सहमति जताई है। वहीं जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।
दरअसल, सिटिजनशिप एक्ट की धारा 6A को 1985 में असम समझौते के दौरान जोड़ा गया था। इस कानून के तहत जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आए हैं वो भारतीय नागरिक के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकते हैं। हालांकि 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिकता के लायक नहीं हैं।
इस कानून पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा- हमने धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। हम किसी को अपने पड़ोसी चुनने की अनुमति नहीं दे सकते और यह उनके भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है। हमारा सिद्धांत है जियो और जीने दो।
सुप्रीम कोर्ट ने असम नागरिकता मामले को लेकर 17 याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान धारा 6A के खिलाफ याचिकाओं पर श्याम दीवान और सोमिरन शर्मा अखिल असम अहोम एसोसिएशन की ओर से पेश हुए। के.एन. चौधरी असम संयुक्त महासंघ की ओर से उपस्थित हुए। विजय हंसारिया प्रणव मजूमदार की ओर से पेश हुए।
धारा 6ए के पक्ष में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एडवोकेट स्नेहा कलिता और असम सरकार की ओर से एडवोकेट शुवोदीप रॉय उपस्थित हुए। मालविका त्रिवेदी अखिल असम छात्र संघ की ओर से उपस्थित हुईं। संजय आर हेगड़े और अदील अहमद असम सांख्य लघु संग्राम परिषद की ओर से पेश हुए।
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असम जमीयत उलेमा की ओर से सलमान खुर्शीद उपस्थित हुए। सी.यू. सिंह सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस की ओर से उपस्थित हुए। शादान फरासत, नताशा माहेश्वरी, प्रणव धवन, ऋषिका जैन, अमन नकवी, अभिषेक बब्बर, मृगांका कुकरेजा, हर्षित आनंद और शादाब अजहर के साथ सामाजिक न्याय मंच के लिए उपस्थित हुए।
कपिल सिब्बल जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए। इंदिरा जयसिंह और पारस नाथ सिंह अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ की ओर से पेश हुए। चुनाव आयोग की ओर से साहिल टैगोत्रा उपस्थित हुए।
Citizenship Act 1955 Section 6A