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कांग्रेस ने हरियाणा विधायक दल की मीटिंग बुलाई ,विपक्ष का नेता चुना जाएगा

Congress Candidate Defeat Reason

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा गुट लगातार भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा पर हमलावर है। इसी बीच कांग्रेस हाईकमान ने 18 अक्टूबर को चंडीगढ़ में कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग बुलाने का आदेश दिया है। मीटिंग में विधायक दल का नेता चुना जाएगा।पार्टी सूत्रों के मुताबिक राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, अजय माकन और प्रताप सिंह बाजवा ऑब्जर्वर के तौर पर मौजूद रहेंगे।

वहीं हार के बाद प्रदेश कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया राहुल गांधी से इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं। इससे उदयभान पर प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने और भूपेंद्र हुड्‌डा पर नेता विपक्ष पद पर दावा न करने का दबाव बढ़ गया है।

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक हाईकमान फिर से सांसद कुमारी सैलजा को प्रदेश प्रधान बनाने पर विचार कर रहा है। इसी वजह ये है कि हार के बाद हुड्‌डा-उदयभान की जोड़ी अपने घरों में कैद हो गई है। वहीं सैलजा फील्ड में जाकर वर्करों को सांत्वना देती हुईं नजर आ रही हैं।इसके अलावा हरियाणा विधानसभा में नेता विपक्ष का पद भी उन्हीं के करीबी पूर्व CM भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन को दिया जा सकता है।

इसे देखते हुए हुड्‌डा गुट भी एक्टिव हो गया है। हुड्‌डा गुट ने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए SC चेहरे विधायक गीता भुक्कल और नेता विपक्ष के लिए थानेसर से विधायक चुने गए पंजाबी चेहरे अशोक अरोड़ा का नाम आगे कर दिया है।

हरियाणा में कांग्रेस लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव हार गई है। इस बार पार्टी को 37 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा ने 48 सीटें जीतकर प्रदेश में बहुमत हासिल किया है। इस हार के बाद कांग्रेस ने EVM को भाजपा की जीत का जिम्मेदार ठहराया है।

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वहीं, अपनी हार की समीक्षा ही नहीं की। यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने प्रदेश में भाजपा की जीत में खामियां बताकर अपने खराब प्रदर्शन को ढंकने की कोशिश की है। इससे पहले साल 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने भाजपा की जीत के ही कारण गिनाए। पार्टी ने खुद की कमियां नहीं बताईं और न ही किसी नेता ने हार की जिम्मेदारी ली।

राजनीति के जानकार मानते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के लगातार सत्ता से बाहर रहने का कारण भी यही है। वह हार के कारणों को जानकर उन पर काम करने के बजाय भाजपा की जीत के कारण गिनाने लगते हैं। इससे पार्टी नेताओं की अपनी खामियां छिप जाती हैं, और अगले चुनाव के लिए पार्टी कोई बेहतर प्लेटफॉर्म नहीं बना पाती।

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