धनासरी महला ४ ॥
कलिजुग का धरमु कहहु तुम भाई किव छूटह हम छुटकाकी ॥ हरि हरि जपु बेड़ी हरि तुलहा हरि जपिओ तरै तराकी ॥१॥
हरि जी लाज रखहु हरि जन की ॥ हरि हरि जपनु जपावहु अपना हम मागी भगति इकाकी ॥ रहाउ ॥
हरि के सेवक से हरि पिआरे जिन जपिओ हरि बचनाकी ॥ लेखा चित्र गुपति जो लिखिआ सभ छूटी जम की बाकी ॥२॥
हरि के संत जपिओ मनि हरि हरि लगि संगति साध जना की ॥ दिनीअरु सूरु त्रिसना अगनि बुझानी सिव चरिओ चंदु चंदाकी ॥३॥
तुम वड पुरख वड अगम अगोचर तुम आपे आपि अपाकी ॥ जन नानक कउ प्रभ किरपा कीजै करि दासनि दास दसाकी ॥४॥६॥(अर्थ)
(अंग 668 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू रामदास जी / राग धनासरी / -)
धनासरी महला ४ ॥
हे भाई ! तुम मुझे कलियुग का धर्म बताओ, मैं माया के बन्धनों से मुक्त होने का इच्छुक हूँ, फिर मैं कैसे छूट सकता हूँ? हरि का जाप नाव है और हरि-नाम ही बेड़ा है; जिसने भी हरि का जाप किया है, वह तैराक बनकर भवसागर में से पार हो गया है॥ १॥
हे परमेश्वर ! अपने दास की लाज रखो; मुझ से अपने नाम का जाप करवाओ। मैं तो तुझसे एक तेरी भक्ति की कामना ही करता हूँ॥ रहाउ॥
जिन्होंने हरि की वाणी का जाप किया है, वही वास्तव में हरि के सेवक हैं और वे हरि के प्रिय हैं। चित्र-गुप्त ने उनके कर्मों का जो लेखा लिखा था, यमराज का वह शेष सारा लेखा ही मिट गया है॥ २॥
हरि के संतों ने साधुजनों की संगत में शामिल होकर अपने मन में हरि-नाम का ही जाप किया है। हरि-नाम ने उनके हृदय में स सूर्य रूपी तृष्णा की अग्नि बुझा दी है और उनके हृदय में शीतल रूप चांदनी वाला चांद उदय हो गया है॥३॥
हे प्रभु ! तुम ही विश्व में बड़े महापुरुष एवं अगम्य-अगोचर सर्वव्यापी हो। हे प्रभु ! नानक पर कृपा करो और उसे अपने दासों का दास बना लो॥ ४ ॥ ६॥
HUKAMNAMA SAHIB