Patanjali Misleading Advertisements Case
पतंजलि विज्ञापन केस में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव, बालकृष्ण और अन्य के खिलाफ अवमानना याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने दोनों को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी है।
भ्रामक विज्ञापन के मामले में 23 अप्रैल की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि IMA को अपने डॉक्टरों पर भी विचार करना चाहिए, जो अक्सर मरीजों को महंगी और गैर-जरूरी दवाइयां लिख देते हैं। अगर आप एक उंगली किसी की ओर उठाते हैं, तो चार उंगलियां आपकी ओर भी उठती हैं।
कोर्ट की टिप्पणी को IMA प्रेसिडेंट डॉ. आरवी अशोकन ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। डॉ. अशोकन ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट के अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है। कोर्ट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी और उन्हें नोटिस जारी कर 14 मई तक जवाब मांगा था।
IMA की आलोचना में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि आप (IMA) कहते हैं कि दूसरा पक्ष (पतंजलि आयुर्वेद) गुमराह कर रहा है, आपकी दवा बंद कर रहा है – लेकिन आप क्या कर रहे थे?! … हम स्पष्ट कर दें, यह अदालत किसी भी तरह की पीठ थपथपाने की उम्मीद नहीं कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने 7 मई को IMA की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई की थी। इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया।
बेंच ने कहा था कि अगर लोगों को प्रभावित करने वाले किसी प्रोडक्ट या सर्विस का विज्ञापन भ्रामक पाया जाता है तो सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स भी समान रूप से जिम्मेदार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि उसने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयुष अधिकारियों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ ड्रग एंड कॉस्मेटिक रूल, 1945 के रूल 170 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए क्यों कहा।
सुनवाई के दौरान कोर्ट का ध्यान केंद्र सरकार की ओर से 2023 में जारी एक पत्र की ओर ले जाया गया। इसमें रूल 170 के कार्यान्वयन पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी गई थी। रूल 170 को 2018 में 1945 के नियमों में जोड़ा गया था।
रूल 170 मे कहा गया है कि आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाएं जिस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में मैन्युफैक्चर हो रही है वहां के लाइसेंसिंग अथॉरिटी के अप्रूवल के बिना विज्ञापन नहीं दिया जा सकेगा। इस नियम का उद्देश्य भ्रामक विज्ञापनों से निपटना था।
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जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच को बताया गया कि रूल 170 को कई उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से एक्सपर्ट की सलाह लेने के बाद नियम की फिर से एग्जामिन करने को कहा है।
चूंकि नियम पर अभी पुनर्विचार किया जाना बाकी है, इसलिए केंद्र ने राज्यों से कहा है कि वे भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इसे लागू करने से बचें। हालांकि, बेंच इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं थी।
जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा- बिना निर्णय लिए क्यों कह रहे हैं कि नियम 170 के तहत कार्रवाई न करें? हाई कोर्ट ने आपको निर्णय लेने का निर्देश दिया था। फिलहाल तो कानून वहीं है। बिना निर्णय लिए आपने यह क्यों कहा कि नियम 170 के तहत कदम न उठाएं?’
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अदालत को आश्वासन दिया कि रूल 170 पर अंतिम निर्णय जल्द से जल्द लिया जाएगा।
SC ने कहा था कि ब्रॉडकास्टर्स को कोई भी विज्ञापन दिखाने से पहले एक सेल्फ डिक्लेरेशन फॉर्म दाखिल करना होगा, जिसमें कहा जाएगा कि विज्ञापन नियमों का अनुपालन करते हैं। अदालत ने कहा था कि टीवी ब्रॉडकास्टर्स ब्रॉडकास्ट सर्विस पोर्टल पर घोषणा अपलोड कर सकते हैं और आदेश दिया कि प्रिंट मीडिया के लिए चार हफ्ते के भीतर एक पोर्टल स्थापित किया जाए।
कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों से जुड़ी 2022 की गाइडलाइन का भी जिक्र किया था। इसकी गाइडलाइन 13 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उस प्रोडक्ट या सर्विस के बारे में पर्याप्त जानकारी या अनुभव होना चाहिए जिसे वो एंडोर्स कर रहा है। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह भ्रामक नहीं है। बेंच ने उपभोक्ता की शिकायत दर्ज करने के लिए प्रोसेस बनाने की जरूरत बताई।
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