Today Hukamnama
सलोकु मः ३ ॥
नानक नामु न चेतनी अगिआनी अंधुले अवरे करम कमाहि ॥ जम दरि बधे मारीअहि फिरि विसटा माहि पचाहि ॥१॥
मः ३ ॥
नानक सतिगुरु सेवहि आपणा से जन सचे परवाणु ॥ हरि कै नाइ समाइ रहे चूका आवणु जाणु ॥२॥
(गुरू रामदास जी / राग सोरठि / सोरठि की वार (म: ४))
पउड़ी ॥
धनु स्मपै माइआ संचीऐ अंते दुखदाई ॥ घर मंदर महल सवारीअहि किछु साथि न जाई ॥ हर रंगी तुरे नित पालीअहि कितै कामि न आई ॥ जन लावहु चितु हरि नाम सिउ अंति होइ सखाई ॥ जन नानक नामु धिआइआ गुरमुखि सुखु पाई ॥१५॥(अर्थ)
(अंग 648 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग सोरठि / सोरठि की वार (म: ४))
श्लोक महला ३ ।
हे नानक ! अज्ञानी एवं अन्धे व्यक्ति परमात्मा के नाम को याद नहीं करते अपितु अन्य ही कर्म करते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति यम के द्वार पर बंधे हुए बहुत दण्ड भोगते हैं और अन्त में वे विष्ठा में ही नष्ट हो जाते हैं ॥१॥
महला ३॥
हे नानक ! जो अपने सतगुरु की सेवा करते हैं, वही सत्यशील एवं प्रामाणिक हैं। ऐसे सत्यवादी पुरुष हरि-नाम में ही समाए रहते हैं और उनका जीवन एवं मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है॥२॥
(गुरू रामदास जी / राग सोरठि / सोरठि की वार (म: ४))
पउड़ी॥
धन, सम्पति एवं माया के पदार्थों को संचित करना अंत में बड़ा दुखदायक बन जाता है। घर, मन्दिर एवं महलों को संवारा जाता है, लेकिन उनमें से कोई भी इन्सान के साथ नहीं जाता। मनुष्य अनेक रंगों के कुशल घोड़ों को नित्य पालता है परन्तु वे भी अंत में किसी काम नहीं आते हे भक्तजनो ! अपना चित हरि-नाम में लगाओ, वही अंत में सहायक होगा। नानक ने गुरु के सान्निध्य में नाम का ही ध्यान किया है, जिसके फलस्वरूप उसे सुख प्राप्त हो गया है॥१५॥
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