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रामकली महला ५ ॥
काहू बिहावै रंग रस रूप ॥ काहू बिहावै माइ बाप पूत ॥ काहू बिहावै राज मिलख वापारा ॥ संत बिहावै हरि नाम अधारा ॥१॥
रचना साचु बनी ॥ सभ का एकु धनी ॥१॥ रहाउ ॥
काहू बिहावै बेद अरु बादि ॥ काहू बिहावै रसना सादि ॥ काहू बिहावै लपटि संगि नारी ॥ संत रचे केवल नाम मुरारी ॥२॥
काहू बिहावै खेलत जूआ ॥ काहू बिहावै अमली हूआ ॥ काहू बिहावै पर दरब चोराए ॥ हरि जन बिहावै नाम धिआए ॥३॥
काहू बिहावै जोग तप पूजा ॥ काहू रोग सोग भरमीजा ॥ काहू पवन धार जात बिहाए ॥ संत बिहावै कीरतनु गाए ॥४॥
काहू बिहावै दिनु रैनि चालत ॥ काहू बिहावै सो पिड़ु मालत ॥ काहू बिहावै बाल पड़ावत ॥ संत बिहावै हरि जसु गावत ॥५॥
काहू बिहावै नट नाटिक निरते ॥ काहू बिहावै जीआइह हिरते ॥ काहू बिहावै राज महि डरते ॥ संत बिहावै हरि जसु करते ॥६॥
काहू बिहावै मता मसूरति ॥ काहू बिहावै सेवा जरूरति ॥ काहू बिहावै सोधत जीवत ॥ संत बिहावै हरि रसु पीवत ॥७॥
जितु को लाइआ तित ही लगाना ॥ ना को मूड़ु नही को सिआना ॥ करि किरपा जिसु देवै नाउ ॥ नानक ता कै बलि बलि जाउ ॥८॥३॥(अर्थ)
रामकली महला ५ ॥
कोई अपना जीवन दुनिया की रंगरलियों, रसों एवं सौन्दर्य में ही व्यतीत करता है, कोई माता-पिता एवं पुत्र के संग जीवन गुजार देता है, कोई राज्य, धन-सम्पति एवं व्यापार में जिंदगी बिताता है, लेकिन संतों की जिन्दगी हरि-नाम के आधार पर व्यतीत हो जाती है।१॥
यह जगत्-रचना परम-सत्य ने बनाई है और सबका मालिक परमेश्वर ही है॥ १॥ रहाउ॥
कोई वेदों के अध्ययन एवं वाद-विवाद में अपनी जिंदगी गुजार देता है, कोई जीभ के स्वाद में जीवन बिता देता है। किसी कामुक व्यक्ति का जीवन नारी के संग कामपिपासा में ही बीत जाता है, लेकिन संत केवल प्रभु के नाम में ही जिंदगी भर लीन रहते हैं।॥ २॥
किसी का जीवन जुआ खेलते ही व्यतीत हो जाता है। कोई नशे में अपना जीवन गुजार देता है, कोई पराया धन चोरी करने में जिंदगी काट देता है, किन्तु भक्तजन परमात्मा के नाम-ध्यान में अपना जीवन साकार कर लेते हैं।॥ ३॥
किसी का जीवन योग साधना, तपस्या एवं पूजा में ही गुजर जाता है, कोई रोग-शोक एवं भ्रम में पड़कर जिन्दगी बिता देता है, कोई योगासन से प्राणायाम करके जीवन व्यतीत कर देते हैं, लेकिन संतों का जीवन ईश्वर का भजन-कीर्तन करते ही व्यतीत हो जाता है॥ ४ ॥
किसी का जीवन दिन-रात सफर करते ही गुजर जाता है, कोई रणभूमि में डटकर लड़ता हुआ ही जिंदगी काट देता है, कुछ लोग अध्यापक बनकर बच्चों को विद्या देने में ही समय बिता देते हैं, परन्तु संतों की जिन्दगी भगवान का यशोगान करने में व्यतीत हो जाती है॥ ५॥
किसी का जीवन कलाकार बनकर नाटक एवं नृत्य में ही गुजर जाता है, कोई जीव-हत्या एवं लूटपाट में जिंदगी बिता देते हैं, कोई अपना जीवन राज-भाग के कामों में डरता व्यतीत कर देता है, परन्तु संत प्रभु का यशोगान करते ही जिन्दगी बिता देते हैं।॥ ६॥
किसी का सारा समय सलाह-मशकिरा एवं परामर्श देने में ही कट जाता है, कोई जिन्दगी की आवश्यकताओं को पूरा करने एवं सेवा करते ही वक्त निकाल देता है, किसी का जीवन-संशोधन करने में ही समय गुजर जाता है, परन्तु संतों की पूरी जिंदगी हरि-नाम रूपी रस का पान करने में ही गुजर जाती है॥ ७॥
सच तो यही है कि ईश्वर ने जीव को जिस कार्य में लगाया है, वह उस में लग गया है। न कोई मूर्ख है और न ही कोई चतुर है। परमात्मा कृपा करके जिसे अपना नाम देता है, नानक उस पर बलिहारी जाता है ॥८॥३॥
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