Today Hukamnama
सूही महला ५ ॥
गुर कै बचनि रिदै धिआनु धारी ॥ रसना जापु जपउ बनवारी ॥१॥
सफल मूरति दरसन बलिहारी ॥ चरण कमल मन प्राण अधारी ॥१॥ रहाउ ॥
साधसंगि जनम मरण निवारी ॥ अम्रित कथा सुणि करन अधारी ॥२॥
काम क्रोध लोभ मोह तजारी ॥ द्रिड़ु नाम दानु इसनानु सुचारी ॥३॥
कहु नानक इहु ततु बीचारी ॥ राम नाम जपि पारि उतारी ॥४॥१२॥१८॥(अर्थ)
सूही महला ५ ॥
गुरु के वचन द्वारा हृदय में भगवान् का ही ध्यान धारण करता हूँ। अपनी जीभ से परमात्मा का जाप ही जपता हूँ॥ १॥
उसका रूप फलदायक है, मैं तो उसके दर्शन पर बलिहारी हूँ। उसके चरण-कमल मेरे मन एवं प्राणों का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
साधुओं की संगति में मैंने जन्म-मरण का निवारण कर लिया है। कानों से हरि की अमृत कथा को सुनकर उसे अपने जीवन का आसरा बना लिया है॥ २ ॥
काम, क्रोध, लोभ एवं मोह को छोड़ दिया है। जीवन में परमात्मा का नाम, दान, स्नान एवं शुभ आचरण को दृढ़ किया है॥ ३॥
हे नानक ! मैंने इसी तत्व पर विचार किया है केि राम का नाम जपने से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है ॥४॥ १२ ॥ १८ ॥
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