Today Hukamnama
बिलावलु महला ५ ॥
राखि लीए अपने जन आप ॥ करि किरपा हरि हरि नामु दीनो बिनसि गए सभ सोग संताप ॥१॥ रहाउ ॥
गुण गोविंद गावहु सभि हरि जन राग रतन रसना आलाप ॥ कोटि जनम की त्रिसना निवरी राम रसाइणि आतम ध्राप ॥१॥
चरण गहे सरणि सुखदाते गुर कै बचनि जपे हरि जाप ॥ सागर तरे भरम भै बिनसे कहु नानक ठाकुर परताप ॥२॥५॥८५॥(अर्थ)
(अंग 821 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अर्जन देव जी / राग बिलावलु / -)
बिलावलु महला ५ ॥
ईश्वर ने स्वयं ही अपने दास को बचा लिया है। उसने कृपा करके नाम दिया है, जिससे सारे शोक-संताप नष्ट हो गए हैं॥ १॥ रहाउ॥
हे भक्तजनो ! सभी मिलकर गोविंद का गुणगान करो और अपनी जिव्हा सेअमूल्य राग उच्चारण करो। अब करोड़ों जन्मों की तृष्णा दूर हो गई है और राम नाम रूपी रसायन से आत्मा तृप्त हो गई है॥ १ ॥
मैंने सुखदाता की शरण लेकर उसके चरण पकड़ लिए हैं तथा गुरु के वचन द्वारा हरि का जाप किया है। हे नानक ! ठाकुर के प्रताप से भवसागर से पार हो गए हैं और सारे भृम -भय नाश हो गए हैं ॥ २॥ ५ ॥ ८५॥
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