Today Hukamnama
धनासरी महला ५ ॥
त्रिपति भई सचु भोजनु खाइआ ॥ मनि तनि रसना नामु धिआइआ ॥१॥
जीवना हरि जीवना ॥ जीवनु हरि जपि साधसंगि ॥१॥ रहाउ ॥
अनिक प्रकारी बसत्र ओढाए ॥ अनदिनु कीरतनु हरि गुन गाए ॥२॥
हसती रथ असु असवारी ॥ हरि का मारगु रिदै निहारी ॥३॥
मन तन अंतरि चरन धिआइआ ॥ हरि सुख निधान नानक दासि पाइआ ॥४॥२॥५६॥
(अर्थ)
धनासरी महला ५ ॥
सत्य का भोजन खाने से मैं तृप्त हो गया हूँ। अपने मन, तन एवं जिह्मा से मैंने परमात्मा के नाम का ध्यान किया है।॥१॥
भगवान के सिमरन में जीना ही वास्तव में सच्चा जीवन है। साधुओं की संगत में मिलकर उसका भजन करना ही वास्तविक जीवन है॥१॥रहाउ ॥
जँहा मैंने अनेक प्रकार के वस्त्र पहने हैं वही मैंने प्रतिदिन ही जो भजन-कीर्तन एवं भगवान का गुणगान किया है।॥२॥
यही मेरे लिए हाथी, रथ एवं घोड़े की सवारी करना है में भगवान से मिलन का मार्ग अपने हृदय में देखता हूँ ॥३॥
मैंने अपने मन, तन, अन्तर में ईश्वर का ही ध्यान किया है। हे नानक ! दास ने सुखों का भण्डार परमेश्वर पा लिया है॥४॥२॥५६॥
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