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श्री दरबार साहिब अमृतसर से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

रामकली महला १ ॥
साहा गणहि न करहि बीचारु ॥ साहे ऊपरि एकंकारु ॥ जिसु गुरु मिलै सोई बिधि जाणै ॥ गुरमति होइ त हुकमु पछाणै ॥१॥
झूठु न बोलि पाडे सचु कहीऐ ॥ हउमै जाइ सबदि घरु लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
गणि गणि जोतकु कांडी कीनी ॥ पड़ै सुणावै ततु न चीनी ॥ सभसै ऊपरि गुर सबदु बीचारु ॥ होर कथनी बदउ न सगली छारु ॥२॥
नावहि धोवहि पूजहि सैला ॥ बिनु हरि राते मैलो मैला ॥ गरबु निवारि मिलै प्रभु सारथि ॥ मुकति प्रान जपि हरि किरतारथि ॥३॥
वाचै वादु न बेदु बीचारै ॥ आपि डुबै किउ पितरा तारै ॥ घटि घटि ब्रहमु चीनै जनु कोइ ॥ सतिगुरु मिलै त सोझी होइ ॥४॥
गणत गणीऐ सहसा दुखु जीऐ ॥ गुर की सरणि पवै सुखु थीऐ ॥ करि अपराध सरणि हम आइआ ॥ गुर हरि भेटे पुरबि कमाइआ ॥५॥
गुर सरणि न आईऐ ब्रहमु न पाईऐ ॥ भरमि भुलाईऐ जनमि मरि आईऐ ॥ जम दरि बाधउ मरै बिकारु ॥ ना रिदै नामु न सबदु अचारु ॥६॥
इकि पाधे पंडित मिसर कहावहि ॥ दुबिधा राते* महलु न पावहि ॥ जिसु गुर परसादी नामु अधारु ॥ कोटि मधे को जनु आपारु ॥७॥
एकु बुरा भला सचु एकै ॥ बूझु गिआनी सतगुर की टेकै ॥ गुरमुखि विरली एको जाणिआ ॥ आवणु जाणा मेटि समाणिआ ॥८॥
जिन कै हिरदै एकंकारु ॥ सरब गुणी साचा बीचारु ॥ गुर कै भाणै करम कमावै ॥ नानक साचे साचि समावै ॥९॥४॥

(अर्थ)
रामकली महला १ ॥
पण्डित शुभ मुहूर्त की गणना करता है, परन्तु यह विचार नहीं करता केि ऑकार मुहूर्त से ऊपर है। जिसे गुरु मिल जाता है, वही मुहूर्त की विधि को जानता है। जब मनुष्य को गुरु उपदेश प्राप्त हो जाता है, तो वह परमात्मा के हुक्म को पहचान लेता है। १॥
हे पण्डित ! कभी झूठ न बोल, सत्य ही कहना चाहिए। जब अहंकार दूर हो जाता है तो शब्द द्वारा सच्चा घर मेिल जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ज्योतिषी ग्रह-नक्षत्रों की गणना करके कुण्डली बनाता है। वह कुण्डली को पढ़-पढ़कर दूसरों को सुनाता है परन्तु परमतत्व को नहीं जानता। गुरु के शब्द का विचार सबसे ऊपर है। में कोई अन्य बात नहीं करता, चूंकि अन्य सबकुछ राख समान है॥ २॥
पण्डित नहा-धोकर पत्थरों की मूर्तियों की पूजा करता है किन्तु परमात्मा के नाम में लीन हुए बिना मन मैला ही रहता है। घमण्ड को दूर करने से ही जीव को सारथी प्रभु मिलता है। प्राणों को मुक्ति देने वाले एवं कृतार्थ करने वाले परमात्मा को जप लो॥ ३॥
तू वेदों का तो विचार नहीं करता और वाद-विवाद बारे ही सोचता रहता है। तू स्वयं तो डूब रहा है, फिर अपने पूर्वजों को कैसे पार करवा सकता है। कोई विरला ही घट-घट में व्यापक ब्रह्म को जानता है। जिसे सतिगुरु मिल जाता है, उसे ज्ञान हो जाता है॥ ४॥
मुहूर्त की गणना करने से सन्देह बना रहता है और दुख भोगना पड़ता है। गुरु की शरण में आने से सुख उपलब्ध हो जाता है। अनेक अपराध करके जब हम गुरु की शरण में आ जाते हैं तो पूर्व जन्म में किए शुभ कर्मों के कारण गुरु ईश्वर से मिला देता है॥ ५॥
यदि हम गुरु की शरण में नहीं आते तो ब्रहा की प्राप्ति नहीं हो सकती। भ्रमों में भूलकर हम जन्म-मरण के चक्र में ही पड़े रहते हैं। विकारों के कारण बंधकर यम के द्वार पर मारे जाते हैं। न हमारे ह्रदय में नाम बसता है और न ही नेक आचरण बनता है॥ ६॥
कोई स्वयं को पुरोहित, पण्डित एवं मिश्र कहलवाता है लेकिन दुविधा में लीन होकर सत्य को प्राप्त नहीं करते। गुरु की कृपा से जिसे परमात्मा के नाम का आधार मिल गया है, करोड़ों में कोई विरला ही प्रभु का भक्त है॥ ७॥
दुनिया में चाहे कोई बुरा अथवा भला है, लेकिन एक परमात्मा ही सत्य है। हे ज्ञानी ! सतगुरु का सहारा लेकर इस रहस्य को समझो। गुरु से उपदेश लेकर किसी विरले ने एक ईश्वर को समझा है और वह आवागमन मिटा कर सत्य में ही विलीन हो गया है॥ ८॥
जिसके हृदय में ऑकार है, वह सर्वगुणसम्पन्न सच्चे प्रभु का चिंतन करता है। हे नानक ! ऐसा जीव गुरु की रज़ानुसार कर्म करता है और परम सत्य में ही विलीन हो जाता है॥ ६ ॥ ४॥

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