Today Hukamnama
सोरठि महला ५ ॥
विचि करता पुरखु खलोआ ॥ वालु न विंगा होआ ॥ मजनु गुर आंदा रासे ॥ जपि हरि हरि किलविख नासे ॥१॥
संतहु रामदास सरोवरु नीका ॥ जो नावै सो कुलु तरावै उधारु होआ है जी का ॥१॥ रहाउ ॥
जै जै कारु जगु गावै ॥ मन चिंदिअड़े फल पावै ॥ सही सलामति नाइ आए ॥ अपणा प्रभू धिआए ॥२॥
संत सरोवर नावै ॥ सो जनु परम गति पावै ॥ मरै न आवै जाई ॥ हरि हरि नामु धिआई ॥३॥
इहु ब्रहम बिचारु सु जानै ॥ जिसु दइआलु होइ भगवानै ॥ बाबा नानक प्रभ सरणाई ॥ सभ चिंता गणत मिटाई ॥४॥७॥५७॥
(अर्थ)
सोरठि महला ५ ॥
कर्ता पुरुष स्वयं आकर खड़ा हुआ है और मेरा एक बाल भी बांका नहीं हुआ। गुरु ने मेरा स्नान सफल कर दिया है। हरि-परमेश्वर का सिमरन करने से मेरे किल्विष-पाप नाश हो गए हैं ॥ १॥
हे संतो ! रामदास का सरोवर उत्कृष्ट है, जो कोई भी इस में स्नान करता है, उसकी वंशावलि का उद्धार हो जाता है और वह अपनी आत्मा का भी कल्याण कर लेता है॥ १ ॥ रहाउ ॥
जगत उसकी जय-जयकार करता है और उसे मनोवांछित फल मिल जाता है। वह स्वस्थ हो जाता है, जो यहाँ आकर स्नान करता है और प्रभु का ध्यान करता है ।॥ २ ॥
जो संतों के सरोवर में स्नान करता है, उस व्यक्ति को परमगति मिल जाती है। उसका जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है जो हरि-नाम का ध्यान करता है ॥ ३॥
वही यह ब्रह्म विचार समझता है, जिस पर भगवान दयालु होता है। नानक का कथन है कि हे बाबा ! जो प्रभु की शरण में आता है उस की समस्त चिंताएँ एवं संकट मिट जाते हैं।॥ ४॥ ७ ॥ ५७ ॥
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