Today Hukamnama
सलोक ॥
मन इछा दान करणं सरबत्र आसा पूरनह ॥ खंडणं कलि कलेसह प्रभ सिमरि नानक नह दूरणह ॥१॥
हभि रंग माणहि जिसु संगि तै सिउ लाईऐ नेहु ॥ सो सहु बिंद न विसरउ नानक जिनि सुंदरु रचिआ देहु ॥२॥
पउड़ी ॥
जीउ प्रान तनु धनु दीआ दीने रस भोग ॥ ग्रिह मंदर रथ असु दीए रचि भले संजोग ॥ सुत बनिता साजन सेवक दीए प्रभ देवन जोग ॥ हरि सिमरत तनु मनु हरिआ लहि जाहि विजोग ॥ साधसंगि हरि गुण रमहु बिनसे सभि रोग ॥३॥(अर्थ)
(अंग 706 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अर्जन देव जी / राग जैतसरी / जैतसरी की वार (म: ५))
श्लोक ॥
जो हमें मनोवांछित दान प्रदान करता है, हमारी समस्त अभिलाषाएँ पूरी करता है, हमारे दुःखों-क्लेशों का नाश करता है, अतः हे नानक ! हमें उस प्रभु का ही सिमरन करते रहना चाहिए, जो हमसे कहीं दूर नहीं अर्थात् हमारे पास ही है॥ १॥
जिसकी करुणा-दृष्टि से हम सभी सुख भोगते हैं, हमें तो उसके साथ ही अपना प्रेम लगाना चाहिए। हे नानक ! जिसने इस सुन्दर शरीर का निर्माण किया है, उस मालिक को हमें एक क्षण भर के लिए भी विस्मृत नहीं करना चाहिए॥ २॥
पउड़ी॥
हे जीव ! भगवान ने तुझे जीवन, प्राण, शरीर एवं धन प्रदान किया है और सर्व प्रकार के रस भोग दिए हैं। भले संयोग बनाकर ही उसने तुझे घर, महल, रथ एवं घोड़े दिए हैं। सभी को देने में समर्थ उस प्रभु ने तुझे पुत्र, पत्नी, मित्र एवं सेवक दिए हैं। उस भगवान का भजन करने से तन एवं मन हर्षित हो जाते हैं तथा वियोग भी समाप्त हो जाते हैं। अतः संतों-महापुरुषों की पवित्र सभा में सम्मिलित होकर भगवान का गुणगान करो, जिससे सभी रोग नाश हो जाएँगे।॥ ३॥
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