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श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

तिलंग महला ४ ॥
हरि कीआ कथा कहाणीआ गुरि मीति सुणाईआ ॥ बलिहारी गुर आपणे गुर कउ बलि जाईआ ॥१॥
आइ मिलु गुरसिख आइ मिलु तू मेरे गुरू के पिआरे ॥ रहाउ ॥
हरि के गुण हरि भावदे से गुरू ते पाए ॥ जिन गुर का भाणा मंनिआ तिन घुमि घुमि जाए ॥२॥
जिन सतिगुरु पिआरा देखिआ तिन कउ हउ वारी ॥ जिन गुर की कीती चाकरी तिन सद बलिहारी ॥३॥
हरि हरि तेरा नामु है दुख मेटणहारा ॥ गुर सेवा ते पाईऐ गुरमुखि निसतारा ॥४॥
जो हरि नामु धिआइदे ते जन परवाना ॥ तिन विटहु नानकु वारिआ सदा सदा कुरबाना ॥५॥
सा हरि तेरी उसतति है जो हरि प्रभ भावै ॥ जो गुरमुखि पिआरा सेवदे तिन हरि फलु पावै ॥६॥
जिना हरि सेती पिरहड़ी तिना जीअ प्रभ नाले ॥ ओइ जपि जपि पिआरा जीवदे हरि नामु समाले ॥७॥
जिन गुरमुखि पिआरा सेविआ तिन कउ घुमि जाइआ ॥ ओइ आपि छुटे परवार सिउ सभु जगतु छडाइआ ॥८॥
गुरि पिआरै हरि सेविआ गुरु धंनु गुरु धंनो ॥ गुरि हरि मारगु दसिआ गुर पुंनु वड पुंनो ॥९॥
जो गुरसिख गुरु सेवदे से पुंन पराणी ॥ जनु नानकु तिन कउ वारिआ सदा सदा कुरबाणी ॥१०॥
गुरमुखि सखी सहेलीआ से आपि हरि भाईआ ॥ हरि दरगह पैनाईआ हरि आपि गलि लाईआ ॥११॥
जो गुरमुखि नामु धिआइदे तिन दरसनु दीजै ॥ हम तिन के चरण पखालदे धूड़ि घोलि घोलि पीजै ॥१२॥
पान सुपारी खातीआ मुखि बीड़ीआ लाईआ ॥ हरि हरि कदे न चेतिओ जमि पकड़ि चलाईआ ॥१३॥
जिन हरि नामा हरि चेतिआ हिरदै उरि धारे ॥ तिन जमु नेड़ि न आवई गुरसिख गुर पिआरे ॥१४॥
हरि का नामु निधानु है कोई गुरमुखि जाणै ॥ नानक जिन सतिगुरु भेटिआ रंगि रलीआ माणै ॥१५॥
सतिगुरु दाता आखीऐ तुसि करे पसाओ ॥ हउ गुर विटहु सद वारिआ जिनि दितड़ा नाओ ॥१६॥
सो धंनु गुरू साबासि है हरि देइ सनेहा ॥ हउ वेखि वेखि गुरू विगसिआ गुर सतिगुर देहा ॥१७॥
गुर रसना अम्रितु बोलदी हरि नामि सुहावी ॥ जिन सुणि सिखा गुरु मंनिआ तिना भुख सभ जावी ॥१८॥
हरि का मारगु आखीऐ कहु कितु बिधि जाईऐ ॥ हरि हरि तेरा नामु है हरि खरचु लै जाईऐ ॥१९॥
जिन गुरमुखि हरि आराधिआ से साह वड दाणे ॥ हउ सतिगुर कउ सद वारिआ गुर बचनि समाणे ॥२०॥
तू ठाकुरु तू साहिबो तूहै मेरा मीरा ॥ तुधु भावै तेरी बंदगी तू गुणी गहीरा ॥२१॥
आपे हरि इक रंगु है आपे बहु रंगी ॥ जो तिसु भावै नानका साई गल चंगी ॥२२॥२॥(अर्थ)
तिलंग महला ४ ॥
हरि की कथा-कहानियाँ मुझे मित्र गुरु ने सुनाई हैं। मैं अपने गुरु पर बलिहारी हूँ और उस पर ही कुर्बान जाता हूँ॥ १॥
हे गुरु के शिष्य ! मुझे आकर मिल। हे मेरे गुरु के प्यारे ! तू मुझे आकर मिल॥ रहाउ॥
हरि के गुण हरि को बहुत अच्छे लगते हैं और वे गुण मैंने गुरु से पाए हैं। जिन्होंने गुरु की रज़ा को खुशी-खुशी माना है, मैं उन पर हमेशा कुर्बान जाता हूँ॥ २॥
जिन्होंने प्यारे सतिगुरु के दर्शन किए हैं, मैं उन पर बार-बार कुर्बान जाता हूँ। जिन्होंने गुरु की चाकरी की है, उन पर मैं सदैव बलिहारी हूँ॥ ३॥
हे प्रभु! तेरा नाभ सबदुःख मिटाने वाला है। यह (नाम) गुरु की सेवा करने से पाया जाता है तथा गुरुमुख बनने से आदमी का भवसागर से उद्धार हो जाता है॥ ४॥
जो व्यक्ति हरि-नाम का ध्यान करते हैं वे प्रभु को परवान हो जाते हैं। नानक उन पर न्योछावर है और हमेशा ही कुर्बान जाता है। ५॥
हे हरि ! वही तेरी उस्तति है, जो तुझे अच्छी लगती है। जो गुरुमुख प्यारे प्रभु की सेवा करते हैं, वे फल पा लेते हैं।॥ ६॥
जिन लोगों का हरि से प्रेम हो जाता है उनके दिल प्रभु से ही मिले रहते हैं। वे अपने प्यारे प्रभु को जप-जप कर ही जिंदा रहते हैं और हरि का नाम ही याद करते रहते हैं ॥ ७॥
जिन गुरुमुखों ने प्यारे प्रभु का सिमरन किया है, मैं उन पर बार-बार कुर्बान जाता हूँ। वे अपने परिवार सहित स्वयं छूट गए हैं और उन्होंने सारे जगत् को भी छुड़ा लिया है॥ ८ ॥
मेरे प्यारे गुरु ने हरि का सिमरन किया है, इसलिए मेरा गुरु धन्य-धन्य है। गुरु ने मुझे हरि का मार्ग बताया है, गुरु ने मुझ पर बड़ा उपकार किया है॥९॥
जो गुरु के शिष्य अपने गुरु की सेवा करते हैं, वे उत्तम प्राणी हैं। नानक उन पर ही न्योछावर है और सदा उन पर कुर्बान जाता है॥ १०॥
गुरुमुख सखी-सहेलियाँ आप हरि को अच्छी लगी हैं। हरि के दरबार में उन्हें शोभा का वस्त्र पहनाया है और हरि ने स्वयं ही उन्हें अपने गले से लगाया है॥ ११॥
हे प्रभु ! जो गुरुमुख तेरे नाम का ध्यान करते हैं, मुझे उनके दर्शन दीजिए। मैं उनके चरण धोता हूँ और उनकी चरण-धूलि घोल-घोलकर पीता हूँ॥ १२॥
जो जीव-स्त्रियाँ पान-सुपारी खाती हैं और मुँह पर लिपस्टिक लगाती हैं, और हरि को कभी याद नहीं करती तो यम उन्हें पकड़कर आगे लगा लेता है॥ १३ ॥
जिन्होंने हरि को याद किया है और हरि-नाम को अपने हृदय में बसाया है, यम उनके निकट नहीं आता वे गुरु के शिष्य गुरु के प्यारे होते हैं।॥ १४॥
हरि का नाम सुखों का भण्डार है लेकिन कोई गुरुमुख ही इस भेद को जानता है। हे नानक ! जिन्हें सतिगुरु मिल गया है, वे खुशियाँ मनाते हैं॥ १५॥
सतिगुरु को दाता कहा जाता है, जो खुश होकर नाम-देन की कृपा करता है। मैं गुरु परं सदा ही कुर्बान जाता हूँ, जिसने मुझे परमात्मा का नाम दिया है ॥१६॥
वह गुरु धन्य है, मेरी उसे शाबाश है, जो मुझे हरि का संदेश देता है। मैं गुरु को देख-देखकर खुश हो गया हूँ और उस गुरु का रूप बहुत सुन्दर है॥ १७॥
गुरु की रसना अमृत रूपी नाम बोलती है और वह हरि नाम बोलती हुई बड़ी सुन्दर लगती है। जिन्होंने गुरु की शिक्षा को सुनकर उस पर भरोसा किया है, उनकी सारी भूख दूर हो गई है॥ १८ ॥
मुझे बताओ, उस मार्ग पर किंस विधि द्वारा जाया जाता है, जिसे हरि का मार्ग कहा जाता है। हे हरि ! जो तेरा हरि-नाम है, उस नाम को यात्रा खर्च के तौर पर अपने साथ ले जाना चाहिए॥ १६॥
जिन गुरुमुखों ने हरि की आराधना की है, वे बड़े शाह एवं चतुर हैं। मैं सतिगुरु पर सदा ही कुर्बान जाता हूँ और गुरु के वचनों में लीन रहता हूँ॥ २०॥
हे हरि ! तू ही मेरा स्वामी है, तू ही मेरा मालिक है, तू ही मेरा बादशाह है। यदि तुझे अच्छा लगे तो ही तेरी बंदगी कर सकता हूँ, तू गुणों का गहरा सागर है॥ २१॥
हरि स्वयं ही एक रंग वाला है और स्वयं ही बहुरंगी है। हे नानक ! जो उस प्रभु को अच्छा लगता है, मेरे लिए वही बात अच्छी है॥ २२॥ २॥

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