Today Hukamnama
धनासरी महला १ ॥
काइआ कागदु मनु परवाणा ॥ सिर के लेख न पड़ै इआणा ॥ दरगह घड़ीअहि तीने लेख ॥ खोटा कामि न आवै वेखु ॥१॥
नानक जे विचि रुपा होइ ॥ खरा खरा आखै सभु कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
कादी कूड़ु बोलि मलु खाइ ॥ ब्राहमणु नावै जीआ घाइ ॥ जोगी जुगति न जाणै अंधु ॥ तीने ओजाड़े का बंधु ॥२॥
सो जोगी जो जुगति पछाणै ॥ गुर परसादी एको जाणै ॥ काजी सो जो उलटी करै ॥ गुर परसादी जीवतु मरै ॥ सो ब्राहमणु जो ब्रहमु बीचारै ॥ आपि तरै सगले कुल तारै ॥३॥
दानसबंदु सोई दिलि धोवै ॥ मुसलमाणु सोई मलु खोवै ॥ पड़िआ बूझै सो परवाणु ॥ जिसु सिरि दरगह का नीसाणु ॥४॥५॥७॥
(अर्थ)
धनासरी महला १ ॥
मानव की यह काया कागज है और मन इस पर लिखा हुक्म उसकी किस्मत है। परन्तु नादान मानव अपने मस्तक पर लिखी हुई किस्मत के लेख को नहीं पढ़ता। उस भगवान के दरबार में तीन प्रकार की किस्मत के लेख लिखे जाते हैं। देख लो, खोटा सिक्का वहाँ किसी काम नहीं आता॥१॥
हे नानक ! यदि सिक्के पर चाँदी हो तो हर कोई उस सिक्के को खरा-खरा कहता है॥१॥ रहाउ ॥
काजी कचहरी में झूठा न्याय सुना कर हराम का धन खाता है। ब्राह्मण अपने इष्ट देवता को बलि देने के लिए जीव-हत्या करके अपने पाप उतारने हेतु तीर्थ पर जाकर स्नान करता है। अन्धा अर्थात् ज्ञानहीन योगी योग साधना की युक्ति नहीं जानता। काजी, ब्राह्मण एवं योगी यह तीनों ही जीवों हेतु विनाश का बंधन हैं॥ २॥
सच्चा योगी वही है, जो प्रभु-मिलन की युक्ति को समझता है और जो गुरु की कृपा से एक ईश्वर को जानता है। काजी वही है, जो अपनी मनोवृति को विकारों से बदल लेता है और जो गुरु की कृपा से अपने अहंत्व को मार देता है। वास्तविक ब्राह्मण वही है, जो ब्रह्म का चिंतन करता है। वह भवसागर में से स्वयं तो पार होता ही है और अपने समस्त वंश को भी पार करवा देता है॥ ३॥
वही आदमी अक्लमंद है, जो अपने मन को स्वच्छ करता है। वास्तविक मुसलमान वही है, जो अपने मन की अपवित्रता को दूर करता है। वही मनुष्य विद्वान है, जो सत्य को समझता है और ऐसा मनुष्य प्रभु को स्वीकार हो जाता है। ऐसा मनुष्य वही होता है, जिसके माथे पर सत्य के दरबार की स्वीकृति का चिन्ह लगा होता ॥४॥५॥७॥
Today Hukamnama