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श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

सोरठि महला १ ॥
जिसु जल निधि कारणि तुम जगि आए सो अम्रितु गुर पाही जीउ ॥ छोडहु वेसु भेख चतुराई दुबिधा इहु फलु नाही जीउ ॥१॥
मन रे थिरु रहु मतु कत जाही जीउ ॥ बाहरि ढूढत बहुतु दुखु पावहि घरि अम्रितु घट माही जीउ ॥ रहाउ ॥
अवगुण छोडि गुणा कउ धावहु करि अवगुण पछुताही जीउ ॥ सर अपसर की सार न जाणहि फिरि फिरि कीच बुडाही जीउ ॥२॥
अंतरि मैलु लोभ बहु झूठे बाहरि नावहु काही जीउ ॥ निरमल नामु जपहु सद गुरमुखि अंतर की गति ताही जीउ ॥३॥
परहरि लोभु निंदा कूड़ु तिआगहु सचु गुर बचनी फलु पाही जीउ ॥ जिउ भावै तिउ राखहु हरि जीउ जन नानक सबदि सलाही जीउ ॥४॥९॥

(अर्थ)
सोरठि महला १ ॥
जिस नामामृत रूपी निधि हेतु तुम इस दुनिया में आए हो, वह नामामृत गुरु के पास है। धार्मिक वेष का पाखण्ड एवं चतुराई को छोड़ दो, चूंकि दुविधा में ग्रस्त इन्सान को यह (अमृत) फल प्राप्त नहीं होता॥ १ ॥
हे मेरे मन ! तू स्थिर रह और इधर-उधर मत भटक। बाहर तलाश करने से बहुत दु:ख-कष्ट प्राप्त होते हैं, यह अमृत तो देहि रूपी घर में ही है॥ रहाउ ॥
अवगुण छोड़कर गुणों की तरफ दौड़ों अर्थात् गुण संग्रह करो, यदि अवगुणों में ही सक्रिय रहे तो बहुत पछताना पड़ेगा। तुम भले एवं बुरे के अन्तर को नहीं समझते और बार-बार पापों के कीचड़ में डूबते रहते हो॥ २ ॥
यदि मन में लोभ की मैल तथा बहुत सारा झूठ है तो बाहर स्नान करने का क्या अभिप्राय है ? गुरु के उपदेश द्वारा हमेशा ही निर्मल नाम का जाप करो, तभी तेरे अन्तर्मन का कल्याण होगा ॥ ३ ॥
लोभ, निन्दा एवं झूठ को निकाल कर त्याग दो, गुरु के वचन द्वारा ही सच्चा फल मिल जाएगा। हे हरि ! जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही मेरी रक्षा करो, नानक तो शब्द द्वारा तेरी ही स्तुति करता है।॥४॥९॥

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