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श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

सलोक मः ५ ॥
करि किरपा किरपाल आपे बखसि लै ॥ सदा सदा जपी तेरा नामु सतिगुर पाइ पै ॥ मन तन अंतरि वसु दूखा नासु होइ ॥ हथ देइ आपि रखु विआपै भउ न कोइ ॥ गुण गावा दिनु रैणि एतै कमि लाइ ॥ संत जना कै संगि हउमै रोगु जाइ ॥ सरब निरंतरि खसमु एको रवि रहिआ ॥ गुर परसादी सचु सचो सचु लहिआ ॥ दइआ करहु दइआल अपणी सिफति देहु ॥ दरसनु देखि निहाल नानक प्रीति एह ॥१॥
मः ५ ॥
एको जपीऐ मनै माहि इकस की सरणाइ ॥ इकसु सिउ करि पिरहड़ी दूजी नाही जाइ ॥ इको दाता मंगीऐ सभु किछु पलै पाइ ॥ मनि तनि सासि गिरासि प्रभु इको इकु धिआइ ॥ अम्रितु नामु निधानु सचु गुरमुखि पाइआ जाइ ॥ वडभागी ते संत जन जिन मनि वुठा आइ ॥ जलि थलि महीअलि रवि रहिआ दूजा कोई नाहि ॥ नामु धिआई नामु उचरा नानक खसम रजाइ ॥२॥
पउड़ी ॥
जिस नो तू रखवाला मारे तिसु कउणु ॥ जिस नो तू रखवाला जिता तिनै भैणु ॥ जिस नो तेरा अंगु तिसु मुखु उजला ॥ जिस नो तेरा अंगु सु निरमली हूं निरमला ॥ जिस नो तेरी नदरि न लेखा पुछीऐ ॥ जिस नो तेरी खुसी तिनि नउ निधि भुंचीऐ ॥ जिस नो तू प्रभ वलि तिसु किआ मुहछंदगी ॥ जिस नो तेरी मिहर सु तेरी बंदिगी ॥८॥

(अर्थ)
श्लोक महला ५॥
हे कृपानिधान ! कृपा करके मेरा कल्याण कर दे। सतगुरु के चरणों में पड़कर में सर्वदा तेरा नाम जपता हूँ। मेरे मन-तन में अवस्थित हो जाओ ताकि दुखों का नाश हो जाए। अपना हाथ देकर मेरी रक्षा करो, ताकि किसी प्रकार का भय प्रभावित न करे। मैं दिन-रात तेरा यशोगान करता रहूँ, इसलिए मुझे इसी काम में लगाकर रखो। संतजनों की संगति करने से अहंकार का रोग दूर हो जाता है। सब जीवों में एक परमेश्वर ही व्याप्त है। गुरु की कृपा से ही सत्य की प्राप्ति होती है और मैंने भी उस परमसत्य को पा लिया है। हे दीनदयाल ! दया करो और अपनी स्तुति का दान दीजिए। हे नानक ! भगवान से हमारी यही प्रीति है कि उसके दर्शन करके आनंदित हो गया हूँ॥ १॥
महला ५॥
मन में एक ईश्वर को ही जपते रहना चाहिए और एक उसकी ही शरण लेनी चाहिए। एक उससे ही प्रेम करो, उसके अतिरिक्त अन्य कोई प्रेम का स्थान नहीं है। एक दाता से ही माँगना चाहिए, उससे सबकुछ मिल जाता है। अपने मन एवं तन, जीवन की हरेक साँस एवं भोजन का ग्रास लेते समय एक प्रभु का ही ध्यान करो। सच्चे परमेश्वर का नामामृत ही सच्चा कोष है जो गुरु की सहायता से मिलता है। वे संतजन बड़े खुशकिस्मत हैं, जिनके मन में भगवान बस गया है। समुद्र, पृथ्वी एवं नभ में एक परमात्मा ही रमण कर रहा है, अन्य कोई नहीं। हे नानक ! परमेश्वर की मर्जी में ही नाम का ध्यान एवं उच्चारण करता रहता हूँ॥ २॥
पउड़ी।
हे ईश्वर ! जिसका तू रखवाला है, उसे कौन मार सकता है। जिसका तू रक्षक है, उसने तीनों लोकों को विजय कर लिया है। जिसका तू साथ देता है, उसका मुख उज्जवल हो जाता है। जिसे तेरा साथ मिल जाता है, वह अत्यंत निर्मल हो जाता है। जिस पर तेरी कृपा-दृष्टि हो जाती है, उसके कर्मों का हिसाब-किताब नहीं पूछा जाता। जिसे तेरी खुशी हासिल हो जाती है, वह दुनिया की नौ निधियों को भोगता है। हे प्रभु! तू जिसके पक्ष में है, उसे किसी प्रकार की मोहताजी कैसे हो सकती है। जिस पर तेरी मेहर है वही तेरी भजन- बंदगी में लीन है।

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