Today Hukamnama
(भक्त कबीर जी / राग धनासरी )
जो जनु भाउ भगति कछु जानै ता कउ अचरजु काहो ॥ जिउ जलु जल महि पैसि न निकसै तिउ ढुरि मिलिओ जुलाहो ॥१॥
हरि के लोगा मै तउ मति का भोरा ॥ जउ तनु कासी तजहि कबीरा रमईऐ कहा निहोरा ॥१॥ रहाउ ॥
कहतु कबीरु सुनहु रे लोई भरमि न भूलहु कोई ॥ किआ कासी किआ ऊखरु मगहरु रामु रिदै जउ होई ॥२॥३॥
(अर्थ)
(भक्त कबीर जी / राग धनासरी / -)
जो व्यक्ति भगवान के प्रेम एवं उसकी भक्ति के बारे में कुछ जानता है, उसके लिए कोई भी आश्चर्यजनक बात नहीं है। जैसे जल में मिलकर जल दुबारा अलग नहीं होता, वैसे ही कबीर जुलाहा भी अपने आत्माभिमान को समाप्त करके भगवान में लीन हो गया है॥१॥
हे भगवान के लोगो ! मैं तो बुद्धि का भोला हूँ। यदि कबीर अपना शरीर काशी (बनारस) में त्याग दे और मोक्ष प्राप्त कर ले तो इसमें मेरे राम का मुझ पर कौन-सा उपकार होगा ॥ १॥ रहाउ ॥
कबीर जी का कथन है कि हे लोगो ! ध्यानपूर्वक सुनो, कोई भ्रम में पड़कर भत भूलो; जिसके हृदय में राम स्थित है, उसके लिए क्या काशी और वीरान मगहर है, अर्थात् शरीर का त्याग करने के लिए दोनों एक समान हैं।ll २॥ ३॥
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