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सूही महला ४ घरु ६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
नीच जाति हरि जपतिआ उतम पदवी पाइ ॥ पूछहु बिदर दासी सुतै किसनु उतरिआ घरि जिसु जाइ ॥१॥
हरि की अकथ कथा सुनहु जन भाई जितु सहसा दूख भूख सभ लहि जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
रविदासु चमारु उसतति करे हरि कीरति निमख इक गाइ ॥ पतित जाति उतमु भइआ चारि वरन पए पगि आइ ॥२॥
नामदेअ प्रीति लगी हरि सेती लोकु छीपा कहै बुलाइ ॥ खत्री ब्राहमण पिठि दे छोडे हरि नामदेउ लीआ मुखि लाइ ॥३॥
जितने भगत हरि सेवका मुखि अठसठि तीरथ तिन तिलकु कढाइ ॥ जनु नानकु तिन कउ अनदिनु परसे जे क्रिपा करे हरि राइ ॥४॥१॥८॥
(अर्थ)
(गुरू रामदास जी / राग सूही / -)
सूही महला ४ घरु ६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
नीच जाति का आदमी भी हरि का नाम जपने से उत्तम पदवी पा लेता है। इस बारे चाहे दासी पुत्र विदुर के संबंध में विश्लेषण कर लो, जिसके घर में श्रीकृष्ण ने आतिथ्य स्वीकार किया था ॥ १॥
हे भाई ! हरि की अकथनीय कथा सुनो, जिससे चिंता, दुख एवं भूख सब दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
चमार जाति के भक्त रविदास ईश्वर की उस्तति करते थे और हर क्षण प्रभु की कीर्ति गाते रहते थे। वह पतित जाति से महान् भक्त बन गए। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र-इन चारों वर्णो के लोग उनके चरणों में आ लगे ॥ २ ॥
भक्त नामदेव की प्रीति हरि से लग गई। लोग उन्हें छीपा कहकर बुलाते थे। हरि ने क्षत्रिय एवं ब्राह्मणों को पीठ देकर छोड़ दिया और नामदेव की ओर मुख करके उन्हें आदर दिया ॥ ३॥
ईश्वर के जितने भी भक्त एवं सेवक हैं, अड़सठ तीर्थ उनके माथे का तिलक लगाते हैं। यदि जगत् का बादशाह हरि अपनी कृपा करें तो नानक नित्य ही उनके चरण स्पर्श करता रहेगा। ४ ॥ १॥ ८ !!
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