Friday, September 20, 2024
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श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

(भक्त कबीर जी / राग सोरठि / -)
जब जरीऐ तब होइ भसम तनु रहै किरम दल खाई ॥ काची गागरि नीरु परतु है इआ तन की इहै बडाई ॥१॥
काहे भईआ फिरतौ फूलिआ फूलिआ ॥ जब दस मास उरध मुख रहता सो दिनु कैसे भूलिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जिउ मधु माखी तिउ सठोरि रसु जोरि जोरि धनु कीआ ॥ मरती बार लेहु लेहु करीऐ भूतु रहन किउ दीआ ॥२॥
देहुरी लउ बरी नारि संगि भई आगै सजन सुहेला ॥ मरघट लउ सभु लोगु कुट्मबु भइओ आगै हंसु अकेला ॥३॥
कहतु कबीर सुनहु रे प्रानी परे काल ग्रस कूआ ॥ झूठी माइआ आपु बंधाइआ जिउ नलनी भ्रमि सूआ ॥४॥२॥

(अर्थ)
(भक्त कबीर जी / राग सोरठि / -)
जब मनुष्य प्राण त्याग देता है तो उसका शरीर जला दिया जाता है और जलकर राख हो जाता है। यदि मृत शरीर को दफना दिया जाए तो उसे कीड़ों का दल ही खा जाता है। जैसे मिट्टी की कच्ची गागर जल डालने से टूट जाती है, वैसे ही इस कोमल तन की बड़ाई है, जितना गागर का महत्व है।॥१॥
हे भाई ! तू क्यों घमण्ड में अकड़ा हुआ फिर रहा है ? वे दिन तुझे कैसे भूल गए हैं, जब तू दस महीने माता के गर्भ में उल्टे मुँह लटका हुआ था ? ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे मधुमक्खी शहद इकठ्ठा करती रहती है, वैसे ही मूर्ख मनुष्य जीवन भर धन-दौलत ही संचित करता रहता है। जब मनुष्य प्राण त्याग देता है तो सभी कहते हैं कि इस मृत शरीर को श्मशान ले जाओ, ले जाओ और इस भूत को क्यों यहाँ पर रखा हुआ है ?॥२॥
उस मृतक व्यक्ति की पत्नी घर की दहलीज तक उसके साथ जाती है और आगे उसके सभी सज्जन एवं संबंधी जाते हैं। सारा परिवार एवं सभी लोग शमशान जाते हैं और उसके उपरांत आत्मा अकेली ही रह जाती है।॥३॥
कबीर जी कहते हैं कि हे प्राणी ! जरा ध्यानपूर्वक सुनो तुझे काल (मृत्यु) ने ग्रास बनाया हुआ है और अन्धे कुएँ में गिरे हुए हो। जैसे तोता भ्रम में नलकी के संग फँसा रहता है, वैसे ही मनुष्य ने स्वयं को झूठी माया के बन्धन में फँसाया हुआ है।॥४॥२॥

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