Today Hukamnama
बिहागड़ा महला ५ ॥
खोजत संत फिरहि प्रभ प्राण अधारे राम ॥ ताणु तनु खीन भइआ बिनु मिलत पिआरे राम ॥ प्रभ मिलहु पिआरे मइआ धारे करि दइआ लड़ि लाइ लीजीऐ ॥ देहि नामु अपना जपउ सुआमी हरि दरस पेखे जीजीऐ ॥ समरथ पूरन सदा निहचल ऊच अगम अपारे ॥ बिनवंति नानक धारि किरपा मिलहु प्रान पिआरे ॥१॥
जप तप बरत कीने पेखन कउ चरणा राम ॥ तपति न कतहि बुझै बिनु सुआमी सरणा राम ॥ प्रभ सरणि तेरी काटि बेरी संसारु सागरु तारीऐ ॥ अनाथ निरगुनि कछु न जाना मेरा गुणु अउगणु न बीचारीऐ ॥ दीन दइआल गोपाल प्रीतम समरथ कारण करणा ॥ नानक चात्रिक हरि* बूंद मागै जपि जीवा हरि हरि चरणा ॥२॥
अमिअ सरोवरो पीउ हरि हरि नामा राम ॥ संतह संगि मिलै जपि पूरन कामा राम ॥ सभ काम पूरन दुख बिदीरन हरि निमख मनहु न बीसरै ॥ आनंद अनदिनु सदा साचा सरब गुण जगदीसरै ॥ अगणत ऊच अपार ठाकुर अगम जा को धामा ॥ बिनवंति नानक मेरी इछ पूरन मिले स्रीरंग रामा ॥३॥
कई कोटिक जग फला सुणि गावनहारे राम ॥ हरि हरि नामु जपत कुल सगले तारे राम ॥ हरि नामु जपत सोहंत प्राणी ता की महिमा कित गना ॥ हरि बिसरु नाही प्रान पिआरे चितवंति दरसनु सद मना ॥ सुभ दिवस आए गहि कंठि लाए प्रभ ऊच अगम अपारे ॥ बिनवंति नानक सफलु सभु किछु प्रभ मिले अति पिआरे ॥४॥३॥६॥
(अर्थ)
बिहागड़ा महला ५ ॥
संतजन उस भगवान को खोजते रहते हैं, जो हम सभी के प्राणों का मूल आधार है। अपने प्रियतम प्रभु के मिलन बिना उनकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है। हे प्रियतम प्रभु! कृपा करके मुझे आकर मिलो तथा दया करके अपने दामन के साथ मुझे मिला लीजिए। हे मेरे स्वामी ! कृपा-दृष्टि करके मुझे अपना नाम प्रदान कीजिये जिससे मैं तेरी आराधना करता रहूँ और तेरे दर्शन करके ही मैं जीवित रह सकता हूँ। हे दुनिया के मालिक ! तू सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सदा अटल सर्वोपरि अगम्य तथा अपार है। नानक प्रार्थना करता है की है प्राण प्रिय परमेश्वर ! कृपा करके मुझे आकर मिलो ॥ १ ॥
हे राम ! तेरे चरणों के दर्शनों हेतु मैंने अनेक ही जप, तपस्या एवं व्रत इत्यादि किए हैं परन्तु तेरी शरण के बिना मन की तृष्णा कदाचित नहीं बुझती। हे प्रभु! मैं तेरी शरण में आया हूँ, मेरी विकारों की बेड़ियाँ काट दीजिए और इस संसार-सागर से पार कर दें। मैं अनाथ तथा निर्गुण हूँ, मैं कुछ भी नहीं जानता, इसलिए तुम मेरे गुण-अवगुण पर विचार मत करना। प्रियतम गोपाल बड़ा दीनदयालु सर्वशक्तिमान तथा करने कराने वाला है, नानक रूपी चातक हरि रूपी नाम बून्द माँगता है तथा हरी के चरणों का जाप करते हुए जीवित रहता है।२ ॥
हे जीव ! हरि अमृत का सरोवर है, उस हरिनामामृत का पान करो। संतजनों की सभा में ही परमेश्वर मिलता है और उसकी आराधना करने से सभी कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं। वह सभी कार्य सम्पूर्ण करने वाला तथा दुःखों का विदीर्ण करने वाला है, इसलिए अपने मन में हमें उसे एक पल भी विस्मृत नहीं करना चाहिए। सर्वगुणसम्पन्न जगदीश्वर रात-दिन आनंद में तथा सदा सत्यस्वरूप है, वह ठाकुर अनंत, सर्वोच्च तथा अपार है, जिसका धाम अगम्य है। नानक प्रार्थना करता है कि मेरी मनोकामना पूर्ण हो गई है, क्योंकि मुझे ईश्वर मिल गया है।। ३।।
प्रभु का यश सुनने एवं गाने वालों को कई करोड़ यज्ञों का फल प्राप्त होता है। परमात्मा के नाम का जाप करने वालों की सारी वंशावलि ही संसार-सागर से पार हो जाती है। हरि के नाम का जाप करने से प्राणी शोभावान बन जाता है, जिसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता। हे प्राण प्यारे परमेश्वर ! मैं तुझे नहीं भुला सकता क्योंकि मेरे मन को सदैव ही तेरे दर्शनों की अभिलाषा बनी रहती है। वह बड़ा शुभ दिवस आया है, जब सर्वोच्च, अगम्य एवं अपार प्रभु ने अपने गले से हमें लगाया है। नानक प्रार्थना करता है कि जब अत्यंत प्रिय प्रभु मिल जाता है,सबकुछ सफल हो जाता है। ४॥ ३॥ ६॥
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