Today Hukamnama
बिलावलु महला ५ ॥
ऐसे काहे भूलि परे ॥ करहि करावहि मूकरि पावहि पेखत सुनत सदा संगि हरे ॥१॥ रहाउ ॥
काच बिहाझन कंचन छाडन बैरी संगि हेतु साजन तिआगि खरे ॥ होवनु कउरा अनहोवनु मीठा बिखिआ महि लपटाइ जरे ॥१॥
अंध कूप महि परिओ परानी भरम गुबार मोह बंधि परे ॥ कहु नानक प्रभ होत दइआरा गुरु भेटै काढै बाह फरे ॥२॥१०॥९६॥
(अर्थ)
बिलावलु महला ५ ॥
पता नहीं मनुष्य क्यों भूला हुआ है ? वह स्वयं पाप-कर्म करता एवं करवाता है, लेकिन इस बात से इन्कार करता है। लेकिन ईश्वर सदैव साथ रहता हुआ सबकुछ देखता-सुनता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
वह नाम रूपी कचन को छोड़कर माया रूपी काँच का सौदा करता है और अपने शत्रुओं-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से प्रेम करता है और अपने सज्जनों-सत्य, संतोष, दया, धर्म, पुण्य को त्याग देता है। उसे अविनाशी प्रभु कड़वा लगता है और नाशवान् संसार मीठा लगता है। वह माया रूपी विष से लिपट कर जल जाता है॥ १ ॥
ऐसे प्राणी अन्धकूप में गिरे हुए हैं और भ्रम के अँधेरे एवं मोह के बन्धनों में फॅसे हुए हैं। हे नानक ! जब प्रभु दयालु हो जाता है तो वह मनुष्य को गुरु से मिलाकर बांह पकड़कर उसे अंधकूप में से बाहर निकाल देता है॥ २ ॥ १० ॥ ६६ ॥
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