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श्री दरबार साहिब से आज का हुकमनामा

Today Hukamnama

(अंग 493 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू रामदास जी / राग गूजरी / -)
गूजरी महला ४ ॥
होहु दइआल मेरा मनु लावहु हउ अनदिनु राम नामु नित धिआई ॥ सभि सुख सभि गुण सभि निधान हरि जितु जपिऐ दुख भुख सभ लहि जाई ॥१॥
मन मेरे मेरा राम नामु सखा हरि भाई ॥ गुरमति राम नामु जसु गावा अंति बेली दरगह लए छडाई ॥१॥ रहाउ ॥
तूं आपे दाता प्रभु अंतरजामी करि किरपा लोच मेरै मनि लाई ॥ मै मनि तनि लोच लगी हरि सेती प्रभि लोच पूरी सतिगुर सरणाई ॥२॥
माणस जनमु पुंनि करि पाइआ बिनु नावै ध्रिगु ध्रिगु बिरथा जाई ॥ नाम बिना रस कस दुखु खावै मुखु फीका थुक थूक मुखि पाई ॥३॥
जो जन हरि प्रभ हरि हरि सरणा तिन दरगह हरि हरि दे वडिआई ॥ धंनु धंनु साबासि कहै प्रभु जन कउ जन नानक मेलि लए गलि लाई ॥४॥४॥(अर्थ)
(अंग 493 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू रामदास जी / राग गूजरी / -)
गूजरी महला ४ ॥
हे मेरे राम ! मुझ पर दयालु हो जाओ और मेरा मन भक्ति में लगा दो चूंकि मैं सर्वदा ही तेरे नाम का ध्यान करता रहूँ। परमात्मा सभी सुखों, सभी गुणों एवं समस्त निधियों का भण्डार है, जिसका नाम जपने से ही सभी दुख एवं भूख मिट जाते हैं।॥ १॥
हे मेरे मन ! राम का नाम मेरा सखा एवं भाई है। गुरु की मति द्वारा मैं राम-नाम का यश गाता रहता हूँ। अन्तिम समय यह मेरा साथी होगा और प्रभु-दरगाह में मुझे छुड़ा लेगा ॥ १॥ रहाउ॥
हे प्रभु ! तू स्वयं ही दाता एवं अन्तर्यामी है, स्वयं ही कृपा करके मेरे मन में मिलन की तीव्र लालसा लगाई है। अब मेरे मन एवं तन में हरि के लिए तीव्र लालसा लगी है। प्रभु ने मुझे सतगुरु की शरण में डालकर मेरी लालसा पूरी कर दी है॥ २॥
अमूल्य मानव-जन्म पुण्य करने से ही प्राप्त होता है। प्रभु-नाम के बिना यह धिक्कार योग्य है तथा व्यर्थ ही जाता है। प्रभु-नाम के बिना विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पदार्थ भी दु:ख रूप हैं। उसका मुँह फीका ही रहता है और उसके चेहरे पर थूक ही पड़ता है। ३॥
जो लोग हरि-प्रभु की शरण लेते हैं, उन्हें हरि अपनी दरगाह में मान-सम्मान प्रदान करता है। हे नानक ! अपने सेवक को प्रभु धन्य-धन्य एवं शाबाश कहता है। वह उसे गले लगा लेता है और अपने साथ मिला लेता है॥ ४॥ ४॥

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