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हुक्मनामा श्री दरबार साहिब (2फ़रवरी 2024)

Aaj Ka Hukamanama

(अंग 949 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग रामकली / रामकली की वार (म: ३))
सलोकु मः ३ ॥
रैणाइर माहि अनंतु है कूड़ी आवै जाइ ॥ भाणै चलै आपणै बहुती लहै सजाइ ॥ रैणाइर महि सभु किछु है करमी पलै पाइ ॥ नानक नउ निधि पाईऐ जे चलै तिसै रजाइ ॥१॥
मः ३ ॥
सहजे सतिगुरु न सेविओ विचि हउमै जनमि बिनासु ॥ रसना हरि रसु न चखिओ कमलु न होइओ परगासु ॥ बिखु खाधी मनमुखु मुआ माइआ मोहि विणासु ॥ इकसु हरि के नाम विणु ध्रिगु जीवणु ध्रिगु वासु ॥ जा आपे नदरि करे प्रभु सचा ता होवै दासनि दासु ॥ ता अनदिनु सेवा करे सतिगुरू की कबहि न छोडै पासु ॥ जिउ जल महि कमलु अलिपतो वरतै तिउ विचे गिरह उदासु ॥ जन नानक करे कराइआ सभु को जिउ भावै तिव हरि गुणतासु ॥२॥
पउड़ी ॥
छतीह जुग गुबारु सा आपे गणत कीनी ॥ आपे स्रिसटि सभ साजीअनु आपि मति दीनी ॥ सिम्रिति सासत साजिअनु पाप पुंन गणत गणीनी ॥ जिसु बुझाए सो बुझसी सचै सबदि पतीनी ॥ सभु आपे आपि वरतदा आपे बखसि मिलाई ॥७॥(अर्थ)
(अंग 949 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(गुरू अमरदास जी / राग रामकली / रामकली की वार (म: ३))
श्लोक महला ३।
इस जगत्-सागर में एक परमात्मा ही अनंत है, शेष सारी झूठी दुनिया जन्म-मरण के चक्र में पड़ी रहती है। जो व्यक्ति जीवन में मनमर्जी करता है, उसे बहुत दण्ड भोगना पड़ता है। इस जगत्-सागर में सबकुछ उपलब्ध है परन्तु भाग्य से ही प्राप्ति होती है। हे नानक ! यदि जीव परमात्मा की इच्छानुसार चले तो उसे नौ निधियाँ प्राप्त हो जाती हैं॥ १॥ |
महला ३॥
जिसने सहज स्वभाव श्रद्धा से सतगुरु की सेवा नहीं की, अहंकार में ही उसके जन्म का अंत हो गया है। जिसकी रसना ने हरि-नाम रूपी रस का स्वाद नहीं चखा, उसके हृदय-कमल में प्रकाश नहीं हुआ। वह मनमुखी माया रूपी विष खाकर ही मर गया है और माया के मोह ने उसका बिनाश कर दिया है। एक परमात्मा के नाम बिना उसका जीना एवं रहना धिक्कार योग्य है। जब सच्चा प्रभु अपनी कृपा-दृष्टि करता है तो वह दासों का दास बन जाता है। तब वह रात-दिन सतगुरु की सेवा करता रहता है और कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ता। जैसे कमल का फूल जल में निर्लिप्त रहता है, वैसे ही गृहस्थ में रहकर त्यागी बना रहता है। हे नानक ! जैसे गुणों के भण्डार परमात्मा को उपयुक्त लगता है, हर कोई जीव उसकी मर्जी से वैसे ही करता है॥ २॥
पउड़ी ॥
३६ युग घोर अन्धेरा बना रहा था, फिर आप ही उसने स्वयं को प्रगट किया। परमात्मा ने स्वयं ही सृष्टि-रचना करके जीवों को सुमति प्रदान की। उसने स्मृतियों एवं शास्त्रों की रचना की तथा पाप-पुण्य के कर्मों का लेखा लिखा है। जिसे वह ज्ञान देता है, वही इस भेद को समझता है और फिर उसका मन सत्य नाम में विश्वस्त हो जाता है। परमात्मा सर्वव्यापक है और स्वयं ही कृपा करके जीव को साथ मिला लेता है॥ ७॥

Aaj Ka Hukamanama

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