HUKAMNAMA SAHIB
धनासरी भगत रविदास जी की
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हम सरि दीनु दइआलु न तुम सरि अब पतीआरु किआ कीजै ॥ बचनी तोर मोर मनु मानै जन कउ पूरनु दीजै ॥१॥
हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने ॥ कारन कवन अबोल ॥ रहाउ ॥
बहुत जनम बिछुरे थे माधउ इहु जनमु तुम्हारे लेखे ॥ कहि रविदास आस लगि जीवउ चिर भइओ दरसनु देखे ॥२॥१॥(अर्थ)
धनासरी भगत रविदास जी की
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
हे मेरे परमेश्वर ! मुझ जैसा कोई दीन नहीं है और तुझ जैसा अन्य कोई दयालु नहीं है। अब भला और अजमायश क्या करनी है ? अपने सेवक को यह पूर्णतया प्रदान कीजिए कि मेरा मन तेरे वचनों पर आस्था धारण करे॥१॥
हे मेरे राम ! मैं तुझ पर तन एवं मन से कुर्बान जाता हूँ। फिर किस कारण तुम मुझसे बोल क्यों नहीं रहे॥ रहाउ॥
हे माधव ! मैं अनेक जन्मों से तुझसे बिछुड़ा हुआ हूँ और अपना यह जन्म मैं तुझ पर अर्पण करता हूँ। रविदास जी का कथन है कि हे प्रभु ! तेरे दर्शन किए चिरकाल हो गया है, अब तो मैं तेरे दर्शन करने की आशा में ही जीवित हूँ॥ २॥ १ ॥
HUKAMNAMA SAHIB