Today Hukamnama
सूही महला १ घरु ६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु ॥ धोतिआ जूठि न उतरै जे सउ धोवा तिसु ॥१॥
सजण सेई नालि मै चलदिआ नालि चलंन्हि ॥ जिथै लेखा मंगीऐ तिथै खड़े दिसंनि ॥१॥ रहाउ ॥
कोठे मंडप माड़ीआ पासहु चितवीआहा ॥ ढठीआ कमि न आवन्ही विचहु सखणीआहा ॥२॥
बगा बगे कपड़े तीरथ मंझि वसंन्हि ॥ घुटि घुटि जीआ खावणे बगे ना कहीअन्हि ॥३॥
सिमल रुखु सरीरु मै मैजन देखि भुलंन्हि ॥ से फल कमि न आवन्ही ते गुण मै तनि हंन्हि ॥४॥
अंधुलै भारु उठाइआ डूगर वाट बहुतु ॥ अखी लोड़ी ना लहा हउ चड़ि लंघा कितु ॥५॥
चाकरीआ चंगिआईआ अवर सिआणप कितु ॥ नानक नामु समालि तूं बधा छुटहि जितु ॥६॥१॥३॥
(अर्थ)
सूही महला १ घरु ६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कांस्य की धातु बड़ी उज्ज्वल व चमकीली होती है लेकिन घिसाने से इसकी काली स्याही कालिख नजर आ जाती है। यदि सौ बार भी इसे धोया जाए तो भी इसकी जूठन दूर नहीं होती ॥ १॥
सज्जन वही है, जो मेरे साथ रहे (अर्थात् सुख-दुख में साथ निभाए) और यहाँ (जगत्) से चलते समय मेरे साथ जाए। जहाँ कर्मो का लेखा माँगा जाता है, वहाँ मेरे साथ खड़ा दिखाई दे अर्थात् मददगार बन जाए॥ १॥ रहाउ॥
घर, मन्दिर एवं चारों तरफ से चित्रकारी किए हुए महल हों पर ये भीतर से खोखले होते हैं और खंडहर हो जाने पर ये किसी काम नहीं आते ॥ २ ॥
सफेद पंखों वाले बगुले (सफेदपोश) तीर्थ स्थानों पर रहते हैं। लेकिन वे जीवों को गले रो घोट-घोट कर खा जाते हैं इसलिए वे सफेद अर्थात् अच्छे नहीं कहे जा सकते ॥ ३॥
मेरा शरीर सेमल के पेड़ जैसा है। जैसे सेमल के फलों को देखकर पक्षी धोखा खा जाते हैं, वैसे ही मुझे देखकर आदमी भूल कर जाते हैं। जैसे सेमल के फल तोतों के काम नहीं आते, वैसे लक्षण (गुण) मेरे तन में हैं।॥ ४॥
मुझ अन्धे ने पापों का भार अपने सिर पर उठाया हुआ है और यह जीवन रूपी पहाड़ी मार्ग बहुत कठिन है। मैं अपनी अन्धी आँखों से मार्ग ढूंढना चाहता हूँ पर मुझे मार्ग मिलता नहीं। मैं पहाड़ पर चढ़कर कैसे पार हो सकता हूँ॥ ५ ॥
परमात्मा के नाम के सिवा अन्य चाकरियों, भलाइयाँ एवं चतुराइयाँ किस काम की हैं ? हे नानक ! तू परमात्मा के नाम का सिमरन कर, जिससे तू बन्धनों से छूट जाएगा॥ ६॥ १॥ ३॥
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