Today Hukamnama
राम सिमरि राम सिमरि राम सिमरि भाई ॥ राम नाम सिमरन बिनु बूडते अधिकाई ॥१॥ रहाउ ॥
बनिता सुत देह ग्रेह स्मपति सुखदाई ॥ इन्ह मै कछु नाहि तेरो काल अवध आई ॥१॥
अजामल गज गनिका पतित करम कीने ॥ तेऊ उतरि पारि परे राम नाम लीने ॥२॥
सूकर कूकर जोनि भ्रमे तऊ लाज न आई ॥ राम नाम छाडि अम्रित काहे बिखु खाई ॥३॥
तजि भरम करम बिधि निखेध राम नामु लेही ॥ गुर प्रसादि जन कबीर रामु करि सनेही ॥४॥५॥
(अर्थ)
(भक्त कबीर जी / राग धनासरी )
हे भाई ! प्रेम से राम का सिमरन करते रहो, हमेशा राम का ही सिमरन करो। क्योंकि राम नाम के सिमरन के बिना बहुत सारे लोग भवसागर में ही डूब जाते हैं॥१॥ रहाउ॥
स्त्री, पुत्र, सुन्दर शरीर, घर एवं सम्पति-ये सभी सुख देने वाले प्रतीत होते हैं परन्तु जब तेरी मृत्यु का समय आएगा, तब इन में से कुछ भी तेरा नहीं रहेगा।॥१॥
अजामल ब्राहाण, गजिन्द्र हाथी एवं एक वेश्या ने जीवन भर पतित कर्म ही किए थे, परन्तु राम नाम का सिमरन करने से वे भी भवसागर से पार हो गए॥ २॥
हे प्राणी ! पूर्व जन्मों में तू सूअर एवं कुते की योनियों में भटकता रहा, परन्तु फिर भी तुझे शर्म नहीं आई। राम नाम रूपी अमृत को छोड़कर तू क्यों विषय-विकार रूपी विष खाता है॥ ३॥
तू शास्त्रों की विधि अनुसार करने योग्य कर्म एवं निषेध कर्मो के भ्र्म को छोड़कर राम नाम का ही सिमरन करता रह। कबीर जी का कथन है कि गुरु की कृपा से राम को अपना मित्र बना॥४॥५॥
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